दिल्ली में दो साल की निम्मी घर में खेलते हुए नुकीली पेंसिल पर गिर गई। इससे उसकी सांस की नली में 0.5 सेंटीमीटर का छेद हो गया। हादसे के चार घंटे बाद बच्ची को सांस लेने में तकलीफ हुई तो परिजन आकाश अस्पताल लेकर गए, जहां डॉक्टरों ने उसकी सांस नली के लीकेज को ठीक किया। अगर दो घंटे की देरी होती तो बच्ची की जान जा सकती थी।
डॉक्टरों का कहना है कि घटना के 4 घंटे बाद एक अन्य अस्पताल में प्राथमिक देखभाल के बाद निम्मी को सूजन शुरू हो गई थी। अगर रिसाव को बंद नहीं किया जाता तो वह 2 से 3 घंटे और जीवित रह सकती थी, क्योंकि उसके दिल और फेफड़ों को ऑब्सट्रक्टिव शॉक का खतरा था। क्योंकि जमा होने वाली हवा ने फेफड़ों के विस्तार के लिए जगह कम कर दी थी और छाती को ऊपर उठने के लिए सांस लेना जरूरी था।
स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए डॉक्टरों ने उसकी कम उम्र के कारण सर्जरी न करने का विकल्प चुना। सर्जरी के बजाय आराम से और बिना किसी सर्जिकल हस्तक्षेप के चोट को ठीक कर दिया गया। अस्पताल के डॉ. समीर पुनिया ने कहा कि बच्ची का चेहरा, गर्दन, छाती, पेट, आंख सूजी हुई थी। उसे जब हमारे पास लाया गया तो सूजन के कारण वह आंखें नहीं खोल पा रही थी।
ऐसे मामलों में सर्जिकल रिपेयर की जरूरत होती है जिसमें छाती को खोलते हैं। फेफड़े में जाते हैं, और चोट की जगह की सिलाई करते हैं या टूटे हुए पाइप को जोड़ने के लिए गोंद का उपयोग करते हैं। हालांकि, गोंद का उपयोग करने से फिर से रिसाव या विंड पाइप में खराबी का खतरा होता है। बच्ची बहुत छोटी थी इसलिए उसमें ओपन-चेस्ट सर्जरी करना उपयुक्त नहीं था।
ब्रोंकोस्कोपी का उपयोग चोट की जगह को प्रभावित किए बिना उसका पता लगाने के लिए किया जाता है। प्राकृतिक इलाज के लिए चोट की जगह पर 3 दिनों तक कुछ नहीं किया। तीन दिनों के बाद जब ब्रोंकोस्कोप से चोट वाली जगह की स्थिति की जांच की तो पाया कि वह ठीक हो गई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वयस्कों में किसी भी चोट को ठीक होने में 5 से 7 दिन लगते हैं, जबकि छोटे बच्चों में फेफड़े के टिश्यू 48 घंटों में खुद को ठीक कर सकते हैं। पांच दिन बाद उसे छुट्टी दे दी गई और तुरंत बच्ची ने सामान्य जीवन जीना शुरू कर दिया है।