लखीमपुर खीरी में रविवार को भाजपा नेताओं के काफिल की कार से किसानों के कुचले जाने और फिर हिंसा में 4 अन्य लोगों के मारे जाने का मुद्दा यूपी की सियासत को गरमा रहा है। यही नहीं इस मामले ने अब तक कमजोर दिख रही कांग्रेस को एक तरह से राजनीतिक संजीवनी प्रदान की है। 2017 से ही प्रियंका गांधी को पश्चिमी यूपी का प्रभारी बनाया गया था। तब से ही वह इस इलाके में सक्रिय थीं, लेकिन ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है, जब वह मजबूती के साथ चर्चा में भी हैं। यही नहीं प्रियंका गांधी को लखीमपुर जाने से रोकने, गिरफ्तार करने की भी राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई है। महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी से लेकर कश्मीर में महबूबा मुफ्ती तक ने उनका समर्थन किया है।
इसके अलावा अब तक कई पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में आंतरिक कलह से जूझ रही कांग्रेस को भी वह एकजुट करने में कामयाब रही हैं। पंजाब के नए बने सीएम चन्नी से लेकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बघेल तक एक्टिव नजर आए हैं और राहुल गांधी के साथ लखीमपुर खीरी पहुंच रहे हैं। प्रियंका की सक्रियता ने राहुल गांधी को भी ताकत प्रदान की है, जो बुधवार को दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए तो आत्मविश्वास से भरे नजर आ रहे थे। यही नहीं दो मुख्यमंत्रियों के साथ वह लखनऊ पहुंचे और जब अपनी गाड़ी से निकलने की परमिशन नहीं मिली तो धरने पर बैठ गए। आखिर में अपनी ही गाड़ी से निकलने की परमिशन भी मिल गई।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो लखीमपुर खीरी में कांग्रेस के सक्रिय होने की एक वजह दो राज्यों में फायदा मिलने की संभावना भी है। दरअसल लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, बहराइच और हरदोई समेत तराई इलाके के कई जिलों में सिखों की अच्छी खासी आबादी है। भाजपा नेताओं की कार से कुचलकर मरने वाले किसान भी सिख समुदाय से ही ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में कांग्रेस लखीमपुर में एक्टिव रहकर यह संदेश देना चाहती है कि वह सिख समुदाय के हितों के लिए तत्पर है। यही वजह है कि उसने अपने पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी को भी साथ लिया है। यहां तक कि पंजाब सरकार ने मारे गए किसानों के परिजनों के लिए 50 लाख रुपये के मुआवजे का भी ऐलान किया है। इतनी ही रकम देने की घोषणा छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने भी की है।
कैसे चूक गए अखिलेश यादव और भाजपा पर होगा क्य़ा असर, जानिए
एक तरफ लखीमपुर मामले से प्रियंका यूपी की सियासत में अचानक चर्चा में आ गई हैं तो वहीं मुख्य विपक्षी दल कहे जाने वाली सपा और उसके नेता अखिलेश यादव माहौल बनाने में नाकामयाब दिखे हैं। इससे यह संदेश भी जा सकता है कि अखिलेश यादव आम लोगों के हितों के लिए सड़क पर उतरने में बहुत आगे नहीं हैं। अब भाजपा के नजरिए से देखें तो यूपी में यह उसके लिए फायदेमंद ही है। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस के पास मजबूत संगठन नहीं है और वह चर्चा में रहने के बाद भी माहौल को इतने वोटों में तब्दील नहीं कर पाएगी कि जीत हासिल कर सके। वहीं जो भी वोट वह हासिल करेगी, उससे सपा का ही नुकसान होगा।