अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों में जश्न का माहौल है। पाकिस्तान के कट्टरपंथियों ने अफगानिस्तान में लगातार तालिबान का समर्थन किया है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में जो चाहा था, वही हुआ है लेकिन पाकिस्तान को जल्द ही इसका पछतावा होने वाला है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पाकिस्तान चरमपंथ की चपेट में आ जाएगा और दुनिया में अलग-थलग पड़ जाएगा।
तालिबान के बेकाबू होने के साथ ही पाकिस्तान की दिक्कतें बढ़ती जाएगी और फिर तालिबान पर लगाम लगाने को लेकर पाकिस्तान खुद को फंसा हुआ पाएगा। पाकिस्तान की घरेलू शांति पर भी इसका बुरा असर पड़ने वाला है। इस्लामी चरमपंथ ने पाकिस्तान को पहले से ही दो भागों में बांट रखा है। ऐसे में तालिबान को देखकर पाकिस्तान के कट्टरपंथी खुद को और मजबूत करने की कोशिश करेंगे। तहरीक-ए-तालिबान-पकिस्तान जैसे तालिबानी शासन का ख्वाब देखने वाले आतंकी संगठनों ने पहले से ही इमरान खान सरकार की नाक में दम किया हुआ है।
तालिबान और इस्लामिक स्टेट जैसे उसके विरोधियों के बीच लड़ाई होती है तो पाकिस्तान को शरणार्थियों के एक नए खेप से निपटना होगा। पाकिस्तान की इकॉनमी का हाल दुनिया से छिपा नहीं है। और अगर ऐसा हुआ तो पाकिस्तान की इकॉनमी रसातल की ओर बढ़ती जाएगी।
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि भविष्य में तालिबान और पाकिस्तान के बीच संबंध ख़राब होंगे और यह बहुत दूर नहीं है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि इसकी शुरुआत पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख फैज हमीद के काबुल दौरे से शुरू हो चुकी है। कैबिनेट पदों को लेकर तालिबान और पाकिस्तान के बीच दरार के संकेत मिले हैं। कैबिनेट में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के हस्तक्षेप से तालिबान नाराज है। एक वायरल ऑडियो में तालिबान कमांडर ने कहा है कि काबुल में कैबिनेट पदों को लेकर पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालिबान की प्रतिष्ठा खराब कर दी है।