दिल्ली हाईकोर्ट का कहना है कि दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों की निरंतर और कुशल सेवाओं के लिए बिलों के भुगतान के लिए एक समयसीमा निर्धारित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, यह देखते हुए कि वे वकील दिल्ली शहर में न्यायालयों को नियमित सहायता प्रदान कर रहे हैं।
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने सुझाव दिया कि वकीलों के बिलों के भुगतान की पूरी प्रक्रिया में सुधार की जरूरत है और समयसीमा तय करने की आवश्यकता है, ऐसा न करने पर सरकार को ब्याज का भुगतान करना चाहिए।
अदालत ने कहा कि यह देखते हुए कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (जीएनसीटीडी) के वकील दिल्ली शहर में अदालत को नियमित सहायता प्रदान कर रहे हैं, उनके बिलों के भुगतान के लिए समयसीमा निर्धारित करना उनकी निरंतर और कुशल सेवाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
अदालत ने अतिरिक्त मुख्य सचिव, जो अब वकीलों के बिलों को मंजूरी देने के प्रभारी हैं, को अगले कदमों से अवगत कराने के लिए सुनवाई की अगली तारीख 14 सितंबर को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया।इसके अलावा, एनआईसी के एक वरिष्ठ अधिकारी जो सिंगल विंडो सिस्टम की तैयारी को देख रहे हैं/पर्यवेक्षण कर रहे हैं, उन्हें भी अगली तारीख पर अदालत के सामने पेश होने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट ने इस बारे में हुई बैठक के मीटिंग मिनट्स को भी रिकॉर्ड में रखने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि सिंगल विंडो सिस्टम के संचालन के लिए समयसीमा के साथ-साथ विभिन्न चरणों को बताते हुए एक स्टेटस रिपोर्ट भी सुनवाई की अगली तारीख से कम से कम दो दिन पहले दाखिल की जाएगी।
दिल्ली सरकार के कानून विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने अदालत में पेश होने के बाद कहा कि चूंकि वकीलों के बिलों को मंजूरी देने के लिए विभिन्न विभागों के बीच समन्वय शामिल है, इसलिए अतिरिक्त मुख्य सचिव को अब यह जिम्मेदारी दी गई है। उन्होंने आगे कहा कि वकीलों के बिलों की निकासी के लिए सिंगल विंडो सिस्टम बनाने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) की सेवाओं का लाभ उठाया जा रहा है।
हालांकि, जब हाईकोर्ट द्वारा मौखिक रूप से पूछा गया कि इसमें कितना समय लगेगा? अग्रवाल ने बताया कि इसमें दो चरण शामिल हैं। सबसे पहले, सॉफ्टवेयर के लिए स्टाफ की प्रतिनियुक्ति की जानी चाहिए, जो कि विभिन्न विभागों द्वारा दिए गए इनपुट के आधार पर तैयार किया जाएगा। दूसरी बात, सॉफ्टवेयर को चालू करना है। स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया है कि आईटी विभाग ने छह महीने के लिए तकनीकी संसाधनों की तैनाती को मंजूरी दी है।
हालांकि, पूछे जाने पर अग्रवाल ने कहा कि प्रक्रिया के पहले चरण में कम से कम दो महीने लग सकते हैं और उसके बाद सॉफ्टवेयर को चालू करने के लिए तीन से चार महीने की आवश्यकता होगी। अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) द्वारा दी गई समयसीमा संतोषजनक नहीं है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि सामान्य तौर पर इसमें कोई संदेह नहीं है कि जहां तक वकीलों के बिलों का संबंध है, उन्हें इसे क्लीयर कराने में कई महीने और कभी-कभी वर्षों लग जाते हैं।
अंजना गोसाईं की ओर से पेश वकील शालिनी नायर ने कोर्ट को बताया कि आज की तारीख में 2018 के बिल भी पेंडिंग हैं। वकील नायर ने आगे कहा कि पिछले आदेश के बाद से लगभग 40,000 रुपये का भुगतान किया गया है और 2 लाख रुपये से अधिक अभी भी बकाया है। उन्होंने कहा कि हालांकि, सरकारी विभाग याचिकाकर्ता से सवाल पूछते रहते हैं, क्योंकि उनके पास मामलों आदि का कोई विवरण नहीं है, लेकिन राशि अभी तक जारी नहीं की गई है।