दिल्ली हाईकोर्ट ने जेल अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा कि वे हलफनामा दाखिल कर बताएं कि एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को सामूहिक बलात्कार से बलात्कार के अपराध में संशोधित किए जाने से संबंधित सही तथ्यों को सजा समीक्षा बोर्ड (एसआरबी) के समक्ष पेश क्यों नहीं किया गया।
हाईकोर्ट ने दिल्ली की जेल के महानिदेशक को निर्देश दिया कि वह हलफनामा में कारण स्पष्ट करें कि क्यों एसआरबी को बताया गया कि मामला सामूहिक दुष्कर्म और डकैती के अपराध का है।
जस्टिस मुक्ता गुप्ता की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि यह देखते हुए कि एसआरबी के समक्ष पूर्ण और सही तथ्य प्रस्तुत नहीं किए गए, महानिदेशक (कारावास) को निर्देश दिया जाता है कि वह सुनिश्चित करें कि एसआरबी की अगली बैठक में याचिकाकर्ता का मामला प्रस्तुत किया जाए। निचली अदालत द्वारा दिए आदेश और अपील में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश भी प्रस्तुत करें जिसमें याचिकाकर्ता को केवल भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-376 के तहत ही दोषी ठहराया गया था और यह तथ्य समिति के समक्ष रखे जाएं।
याचिकाकर्ता के वकील ने हाईकोर्ट को बताया कि उनके मुवक्किल को सामूहिक दुष्कर्म का दोषी ठहराया गया था, लेकिन बाद में हाईकोर्ट ने अपील में सामूहिक दुष्कर्म के अपराध में दोषसिद्धि को दुष्कर्म में तब्दील कर दिया। हालांकि, उसकी उम्रकैद की सजा बरकरार रखी गई। वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल के आवेदन को बार-बार खारिज किया जा रहा है क्योंकि अधिकारियों द्वारा सही तथ्य नहीं रखे जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल का जेल में व्यवहार अच्छा रहा है और उसने पैरोल और फर्लो के तहत दी गई, किसी भी छूट का दुरुपयोग नहीं किया है। हाईकोर्ट ने इस पर अधिकारियों को एसआरबी की अगली बैठक के नतीजों के साथ इस मामले की स्टेटस रिपोर्ट 22 अक्टूबर को मामले की होने वाली अगली सुनवाई से पहले जमा करने का निर्देश दिया है।