सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर गुरुवार को तीखी आलोचना करते हुए कहा कि प्राधिकरण भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ है। कोर्ट ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब प्राधिकरण की ओर से पेश वकील ने प्राधिकरण के अधिकारियों का बचाव करने और फ्लैट खरीददारों की खामियां बतानी शुरू कीं।
जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस एम.आर. शाह की बेंच ने सुपरटेक के नोएडा एक्सप्रेस स्थित एमरॉल्ड कोर्ट परियोजना मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि प्राधिकरण के केवल चेहरे से ही नहीं, बल्कि उसके मुंह, नाक, आंख सभी से भ्रष्टाचार टपकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह दुखद है कि वकील डेवलपर्स का पक्ष ले रहे हैं, जबकि नोएडा प्राधिकरण निजी प्राधिकारण नहीं, सरकारी प्राधिकरण है। कोर्ट ने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया।
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीते सप्ताह गौतमबुद्ध नगर के जिलाधिकारी को निर्देश दिया है कि वह जिले की रेरा द्वारा सुपरटेक बिल्डर के खिलाफ जारी वसूली प्रमाण पत्र को तीन महीने के भीतर क्रियान्वित करें।
जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस साधना रानी की बेंच ने दिल्ली-एनसीआर के पांच याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर रिट याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उक्त आदेश पारित किया। याचिका में सभी ने कहा था कि उन्हें मैसर्स सुपरटेक प्राइवेट लिमिटेड से ना तो तैयार फ्लैट मिल रहा था और ना ही बिल्डर उनका पैसा लौटा रहा है।
याचिकाकर्ताओं के वकील संदीप कुमार ने बताया कि फ्लैट खरीदने के लिए सभी याचियों ने ऋण लिया हुआ है और निरंतर मासिक किस्त का भुगतान कर रहे हैं, साथ ही किराये के मकान में रहने के कारण किराया भी चुका रहे हैं, जो उन पर दोहरी मार है।
उन्होंने बताया कि इन याचिकाकर्ताओं को एक साल पहले ही रेरा से वसूली प्रमाण पत्र के रूप में आदेश मिल चुका है, लेकिन गौतमबुद्ध नगर के जिलाधिकारी की उदासीनता के कारण इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अदालत ने इन्हीं प्रमाण पत्रों के आधार पर बिल्डर से वसूली का निर्देश दिया है।