पेगासस जासूसी की कई खबरें पिछले दिनों आपने पढ़ी होंगी। इसको लेकर कई तरह के सवाल भी आपके मन में जरूर होंगे। तो आइए आज आपको बताते हैं पेगासस के बारे में सबकुछ। कहने को तो यह इजरायल में तैयार किया गया एक जासूसी सॉफ्टवेयर है। लेकिन इसके तौर-तरीके कुछ ऐसे हैं कि अच्छा से अच्छा जासूस भी मात खा जाए। इसके फीचर्स और वर्किंग कुछ ऐसी है कि टारगेट को बिल्कुल भी शक नहीं होता। अगर टारगेट को जरा सा भी शक हुआ तो पेगासस खुद को तबाह कर लेता है। इसलिए किसी को अंदाजा तक नहीं हो पाता कि उसकी जासूसी की जा रही है।
बिना क्लिक किए हो जाता है इंस्टॉल
पेगासस स्पाईवेयर को टारगेट के मोबाइल में बिना कोई क्लिक किए इंस्टॉल हो जाता है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने पेगासस को बनाने वाली इजरायली कंपनी एनएसओ के एक कर्मचारी के हवाले से बताया कि इसके फीचर्स बेहद यूनीक हैं। इसका एक्टिव कलेक्शन फीचर इसे टारगेट डिवाइस से मन मुताबिक सूचनाएं जुटाने की सुविधा देता है। इसके तहत यह सॉफ्टवेयर सूचनाओं के आने का इंतजार नहीं करता, बल्कि टारगेट की डिवाइस से वह सारी सूचनाएं हासिल करने की सुविधा देता है जो अटैकर को चाहिए।
ऐसे करता है खुद को तबाह
पेगासस सेल्फ डिस्ट्रक्ट मोड, यानी खुद को तबाह कर लेने वाले फीचर से लैस है। एनएसओ का कहना है कि हमारे लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि टारगेट को इस बात की भनक न लगने पाए कि जासूसी कौन कर रहा है। ऐसे में पोल खुलने का कोई खतरा होने पर सेल्फ डिस्ट्रक्ट मेकानिज्म ऑन हो जाता है। वहीं अगर 60 दिन तक पेगासस का सर्वर से संपर्क नहीं होता तब भी यह सिस्टम ऑन हो जाता है। इसके अलावा एक तीसरा सीनैरियो भी है। पेगासस बनाने के बाद से ही एनएसओ ने अमेरिका के किसी भी फोन के जासूसी की इजाजत नहीं दी है। अगर किसी के फोन में पेगासस है तो अमेरिकी सीमा में दाखिल होते ही उसके फोन से पेगासस खत्म हो जाएगा।
रियल टाइम में जुटाता है सूचनाएं
एनएसओ के मुताबिक अन्य जासूसी सॉफ्टवेयर केवल बातचीत के कुछ हिस्सों की निगरानी करते हैं। वहीं पेगासस टारगेट में मौजूद सभी तरह की सूचनाओं को उनके संदर्भ के साथ जुटाता है। शुरुआती दौर में यह एसएमएस रिकॉर्ड, कांटैक्ट्स, कॉल हिस्ट्री, ईमेल, मैसेज और ब्राउजिंग हिस्ट्री को कमांड एंड कंट्रोल सर्वर को भेजता है। पेगासस रियल टाइम में पूरा डाटा जुटाता और मॉनीटर करता है। इससे जासूसी करने वाले के पास पूरा मौका होता है कि वह अपने टारगेट पर रियल टाइम एक्शन ले सकता है। वह उसके डिवाइस से मिली सूचना और लोकेशन के आधार पर कुछ भी प्लान कर सकता है।
ऐसे काम करता है पेगासस
जीपीएस लोकेशन ट्रैकिंग: अगर टागरेट ने अपना जीपीएस बंद कर रखा है तो पेगासस इसे ऑन कर देता और सैंपलिंग के बाद बंद भी कर देता है। अगर जीपीएस सिग्नल को एक्सेस नहीं किया जा सकता तो फिर सेल आईडी से सूचना ली जाती है।
वातावरण की आवाज रिकॉर्ड करना: इसके जरिए पेगासस फोन को साइलेंट मोड पर डालकर माइक्रोफोन के जरिए टारगेट की मौजूदगी वाली जगह की आवाज रिकॉर्ड करने लगता है। अगर इस दौरान टारगेट के मोबाइल पर फोन आता है तो तत्काल रिकॉर्डिंग बंद हो जाती है।
फोटो लेना: अगर टारगेट के फोन में पेगासस इंस्टॉल है तो फोन बंद करके रखे होने पर भी यह फ्रंट और बैक कैमरा को फोटो लेने में सक्षम बना देता है। अटैकर फोटो की क्वॉलिटी को लो कर देते हैं ताकि डेटा यूज कम हो और ट्रांसमिशन तेज हो। एनएसओ के मुताबिक चूंकि फोटो लेने में फ्लैश का इस्तेमाल नहीं होता और फोन हिलते रहने या बंद कमरे में होने की भी संभावना रहती है। इसलिए कई बार फोटो आउट ऑफ फोकस रहती हैं।
रूल्स और अलर्ट: इसके तहत टारगेट के फोन में रियल टाइम एक्शन के लिए कई कंडीशंस प्री-सेट की जा सकती हैं। मसलन, जिओ फेंसिंग अलर्ट-जब टारगेट किसी तय जगह पर जाता या आता है। मीटिंग अलर्ट-जब दो डिवाइसेस सेम लोकेशन पर होती हैं। कनेक्शन अलर्ट-किसी खास नंबर पर या नंबर से कॉल या मैसेज आने-जाने पर। कंटेंट अलर्ट-जब मैसेज में कोई स्पेसिफिक शब्द इस्तेमाल किया गया हो।
इन्विजिबल होता है ट्रांसमिशन
पेगासस का ट्रांसमिशन इस तरह से होता है कि इसे इन्विजिबल कहना ही ठीक होगा। एनएसओ का कहना है कि ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि टारगेट के फोन के बैटरी और मेमरी लेवल पर इतना असर न हो कि उसे शक होने लगे। इसलिए ज्यादातार वाई-फाई कनेक्शन से डाटा ट्रांसफर किया जाता है। अगर टारगेट के फोन का बैटरी लेवल लो है तो डाटा ट्रांसमिशन अपने आप रुक जाता है। जब डाटा ट्रांसमिशन संभव नहीं होता तो पेगासस इसे एन्क्रिप्टेड फॉर्म में स्टोर करता है, जिसमें कि पांच परसेंट स्टोरेज भी नहीं इस्तेमाल होता है। वहीं जब कभी हालात ऐसे बन जाते हैं कि डाटा ट्रांसफर करना बिल्कुल संभव नहीं होता तो टेक्स्ट मैसेज के जरिए इसे लिया जाता है। हालांकि इसमें इस बात का खतरा रहता है कि टारगेट के फोन का बिल बढ़ सकता है और उसे शक हो सकता है। पेगासस और सेंट्रल सर्वर के बीच कम्यूनिकेशन एक खास नेटवर्क के जरिए होता है, जिसे पेगासस एनॉनिमाइजिंग ट्रांसमिशन नेटवर्क पीटीएन नाम दिया गया है। एनएसओ का कहना है कि पेगासस का नेटवर्क पूरी दुनिया में फैला हुआ है जो पेगासस सर्वर तक पहुंचने से पहले विभिन्न जगहों से रिडायरेक्ट होता है।