संपत्ति के मालिकाना हक के तौर पर पावर ऑफ अटॉर्नी को स्वीकार नहीं करने के लिए पुलिस को आदेश देने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर उच्च न्यायालय ने गुरुवार को सुनवाई से इनकार कर दिया। इसके साथ ही न्यायालय ने आधारहीन याचिका के लिए याचिकाकर्ता को आड़े हाथ लिया।
मुख्य न्यायाधीश डी. एन. पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने पेशे से याचिकाकर्ता एम.एल. शर्मा से पूछा कि क्या आप चाहते हैं कि दिल्ली पुलिस घर-घर जाकर सर्वेक्षण करे? इस पर शर्मा ने कहा कि जब दिल्ली पुलिस को शिकायत मिलती है कि किसी व्यक्ति ने पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए संपत्ति खरीदी है या रखी है तो ऐसे मामले में पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए। याचिकाककर्ता ने पावर ऑफ अटॉर्नी को अवैध दस्तावेज बताते हुए कहा कि यदि किसी ने इसके जरिए कोई संपत्ति रखी है तो उस पर कालाधन कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। पीठ ने नाराजगी जताते हुए याचिकाकर्ता से कहा कि या तो वह याचिका वापस ले या फिर जुर्माना लगाया जाएगा। उच्च न्यायालय ने कहा कि हम मामले में नोटिस जारी नहीं करना चाहते हैं और न ही वकील पर जुर्माना लगाना चाहते हैं। इसके बाद याचिकाकर्ता एम.एल.शर्मा ने कहा कि वह याचिका वापस लेना चाहते हैं। पीठ ने याचिका को वापस मानते हुए खारिज कर दिया। याचिका में कहा गया था कि पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए संपत्ति की बिक्री काला धन छुपाने और कर से बचने के लिए किया जाता है जो गंभीर अपराध है। याचिका में यह भी दावा किया गया था कि पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से बिचौलिए बेनामी संपत्ति खरीदते हैं और इन संपत्तियों का इस्तेमाल वे किराये के कारोबार में करते है।