नए कृषि कानूनों के विरोध में जारी किसान आंदोलन को 7 महीने से अधिक हो गए हैं, लेकिन अब तक किसान संगठनों और सरकार के बीच गतिरोध दूर नहीं हो सका है। किसान आज हरियाणा के कुरुक्षेत्र में पेहोवा रोड पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों ने पेहोवा की तरफ जाने वाली सड़क को जाम कर दिया है। सुरक्षा बल बल तैनात किया गया है।
किसानों के आज के आंदोलन को देखते हुए पुलिस और तमाम सुरक्षा एजेंसियां भी अलर्ट हो गई हैं। एहतियातन पेहोवा की ओर आने वाले सभी रास्तों पर बैरिकेडिंग कर सुरक्षा बढ़ा दी गई है और पुलिस हर आने-जाने वाले पर नजर रख रही है।
हरियाणा के कृषि मंत्री जय प्रकाश दलाल ने शुक्रवार को कहा कि हम बातचीत के लिए तैयार हैं, लेकिन वे कृषि कानूनों को पूरी तरह से रद्द करना चाहते हैं। वे इस देश में लोकतंत्र नहीं चाहते हैं। लोग अब जान चुके हैं कि ये तथाकथित नेता किसानों के नाम पर राजनीति कर रहे हैं और केवल राजनीतिक लाभ के लिए लड़ रहे हैं।
कृषि कानूनों को निरस्त करने की जिद पर अड़े रहने का कोई फायदा नहीं : खट्टर
बीते महीने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा था कि आंदोलनकारी किसान संगठनों को नए केंद्रीय कृषि कानूनों को निरस्त करने की जिद पर नहीं अड़े रहना चाहिए और सरकार से बातचीत से पहले इसकी शर्त रखने से कोई फायदा नहीं होगा। उन्होंने दावा किया कि केवल चुनिंदा लोग ही कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं और आम किसान खुश हैं।
खट्टर ने कहा था कि आंदोलन कर रहे लोग वास्तव में किसान हैं ही नहीं। असली किसानों को कृषि कानूनों से कोई आपत्ति नहीं है। वे खुश हैं। मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया था कि कृषि कानूनों का विरोध कर रहे लोग राजनीतिक कारणों से ऐसा कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि उनकी पंजाब टीम ऐसा कर रही है क्योंकि वहां चुनाव आ रहे हैं, लेकिन हमारे राज्य में कोई चुनाव बाकी नहीं है। यहां राजनीतिक हथकंडे अपना कर सरकार को बदनाम करने का एजेंडा चल रहा है और कांग्रेस भी इसमें उनका साथ दे रही है।
किसानों से आंदोलन समाप्त करने की केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की अपील और बातचीत के लिए निमंत्रण पर खट्टर ने कहा कि किसान संगठन कानूनों में कमी बताए बगैर बस इन्हें निरस्त करने की मांग पर अड़े हैं। उन्होंने कहा कि यदि वे केवल एक बात पर अड़े रहे और सरकार से बातचीत से पूर्व इसे शर्त बनाते हैं, तो इसका कोई फायदा नहीं होगा।
गौरतलब है कि केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शनकारी किसान पिछले साल 26 नवंबर से दिल्ली-यूपी और हरियाणा की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं। वे इन तीनों कानूनों को रद्द करने और फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने के लिए एक नया कानून लाने की मांग कर रहे हैं। इन विवादास्पद कानूनों पर बने गतिरोध को लेकर हुई किसानों और सरकार के बीच कई दौर की वार्ता बेनतीजा रही।
कृषि कानूनों को रद्द कराने की जिद पर अड़े किसान इस मुद्दे पर सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर चुके हैं। किसानों ने सरकार से जल्द उनकी मांगें मानने की अपील की है। वहीं सरकार की तरफ से यह साफ कर दिया गया है कि कानून वापस नहीं होगा, लेकिन संशोधन संभव है।
बता दें कि किसान हाल ही बनाए गए तीन नए कृषि कानूनों – द प्रोड्यूसर्स ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) एक्ट, 2020, द फार्मर्स ( एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज एक्ट, 2020 और द एसेंशियल कमोडिटीज (एमेंडमेंट) एक्ट, 2020 का विरोध कर रहे हैं। केन्द्र सरकार सितंबर में पारित किए तीन नए कृषि कानूनों को कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश कर रही है, वहीं प्रदर्शन कर रहे किसानों ने आशंका जताई है कि नए कानूनों से एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) और मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और वे बड़े कॉरपोरेट पर निर्भर हो जाएं