कहाँ तक गिरोगे मनुज तुम बताओ
कहां तक गिरोगे
अरे कोई सीमा तो गिरने की होगी
दिल तो दहलता तुम्हारा भी होगा
सोंच है संकुचित मन मे कितना ज़हर है
अरे दुष्ट! पीड़ा तो उसको भी होगी।
कहाँ तक गिरोगे मनुज तुम बताओ
कहाँ तक गिरोगे
है वह विवेकी तो क्या वह पशु है
क्या तुम भी पशु हो और वह भी पशु है
दिल पशु का बड़ा है तुम तो दितिज हो
समझोगे क्या तुम कभी दिल पशु का
कहाँ तक गिरोगे
कहाँ तक गिरोगे मनुज तुम बताओ
कहाँ तक गिरोगे ?
अरे नीच पत्थर! मन के भीतर तो झाँको
तुम तो मनुज थे,ये शंबर हुए क्यों
असुरता भी नत तेरे कदमो के आगे
अब कहाँ तक गिरोगे
कहाँ तक गिरोगे मनुज तुम बताओ
कहाँ तक गिरोगे?
अनिल कुमार मिश्र,
हज़ारीबाग़, झारखंड