“अरी ओ.. सुनती हो …? कल डाक से जो पत्रिका आया था, ताखा पर दिख नहीं रहा है?”
” बाप रे बाप पत्रिका नहीं हुआ , जैसे हीरा- जवाहरात हो गया ! घर में दो दिनों से राशन नहीं है, रिकूं बीमार है और आपको पत्रिका की पड़ी है ! हे लीजिए, पकड़िए अपनी पत्रिका।” हाथ में पत्रिका थमाकर श्रीमती उल्टे पाँव शयनकक्ष में वापस जाने लगी।
” रुको… पत्रिका के बीच का दो पेज गायब है! इसी पेज में फोटो के साथ मेरी कथा छपी थी। ठीक से देखा भी नहीं था ! पेज कहाँ गया ?”
“उफ़फ ! पहले पत्रिका नहीं मिल रही थी इसलिए हल्ला ! अब पेज गायब है, इसलिए प्राण त्याग रहे हैं! लेखक से बढ़िया आप किसी स्कूल के मास्टर होते ! कम से कम महीने में पगार लाते तो घर में ऐसी कंगाली नहीं दिखती ! ”
” एक तो मुझे पत्रिका नहीं मिल रही है ऊपर से तुम्हारी जली कटी ! मात्र घर का काम करती हो और लगता है जैसे तुम पहाड़ ढाहती हो।” मैं उबल पड़ा ।
” हाय राम! दो पेज के वास्ते इतना बवाल !? आपको सब मालूमे है , रिंकू जब सोता है तभीए मैं सो पाती हूँ। इतना हल्ला मचाइएगा तो रिंकू उठिए जाएगा ना ! कितना कठिन से गोदी में ठोक ठोककर उसे सुलायी हूँ ! ”
” विलाप करना बंद करो। पहले ये बताओ बीच का दो पेज कहाँ गया ? ” पत्रिका खोलकर मैंने उसके आगे सरका दिया ।
“जी,ओ… जल्दीबाजी में बी…च का पेज मुझे फा..ड़ ना…पड़ा। ”
” किस बात की जल्दीबाजी हो गई जो पेज फाड़ना पड़ा ?”
” उस समयमुझे चक्कर आ रहा था ।तभीए अपना रींकू एकाएक चद्दरे पर उल्टी कर दिया । पोछने के लिए कुछ्छो नहीं सूझा , सो मैंने…. !”
“जाहिल, गंवार औरत तूने मेरी पत्रिका को फाड़ डाला ।” मेरी नजरें उसे निगलने को तैयार थी।
“ऊं…आं… ऽऽऽऽ…”
तभी रींकू के रोने की आवाज़ सुनते ही वो फट पड़ी, ” नित्य सबेरे गोष्ठी के नाम पर आप निकल जाते हैं और शाम को मेडल लेकर शान से घर लौटते हैं , जैसे किल्ला फतह करके आये हों । मुझे मेडल-वेडल नहीं सुहाता ! साहित्य के नशे में आपको कुछ्छो नहीं सुझता कि घर में क्या हो रहा है ! हे..देखिए, मेरी हालत ! एक घेँट में … और एक पेट में..!” नम आँखों से उभार को आंचल से वह ढकने लगी ।
उसके पेट के उभार पर नजर पड़ते ही… पत्रिका मेरे हाथ से छूटकर गिर गई। मैं फुसफुसाया,
” तुम्हारी कसम, कल से मैं बच्चों को जरूर ट्यूशन पढाऊँगा ।मुझे माफ़ कर दो , आजतक मैं सिर्फ तुम्हारी गलती को ढूँढता रहा ।
नम आँखें अपलक एक दूसरे को निहारती रहीं।
दोनों दिलों की धड़कनों से एक स्वर निकल पड़ी। ,
” सांझ के बाद सबेरा है।”
मिन्नी मिश्रा
पटना