भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के शोधार्थियों के एक दल ने अत्यधिक शर्करा के उपभोग से यकृत (लीवर) में वसा जमा होने की बीमारी से जुड़े कारणों का पता लगाया है। इस बीमारी को फैटी लीवर के नाम से भी जाना जाता है।
शोधार्थियों के मुताबिक इस नई जानकारी से लोगों को यकृत संबंधी गैर-अल्कोहोलिक रोग (एनएएफएलडी) के शुरुआती चरणों में शर्करा की मात्रा घटाने के लिए जागरूक करने में मदद मिलेगी। यह अध्ययन जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल केमिस्ट्री में प्रकाशित हुआ है। यह अध्ययन ऐसे समय में हुआ है, जब सरकार ने एनएएफएलडी को कैंसर, मधुमेह, हृदय संबंधी रोगों की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल किया है।
एनएएफएलडी एक ऐसी मेडिकल स्थिति है जिसमें यकृत में अतिरिक्त वसा जमा होता है। इस रोग के लक्षण करीब दो दशक तक भी नजर नहीं आते हैं। यदि इस रोग का समय पर इलाज नहीं किया जाता है तो अतिरिक्त वसा यकृत की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है। यह रोग बढ़ने पर यकृत कैंसर का रूप भी धारण कर सकता है।
आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर प्रसेनजीत मंडल ने बताया कि एनएएफएलडी का एक कारण शर्करा का अधिक मात्रा में उपभोग है। शर्करा और कार्बोहाइड्रेड के अधिक मात्रा में उपभोग के चलते यकृत उन्हें एक प्रक्रिया के जरिए वसा में तब्दील कर देता है, इससे वसा यकृत में जमा होने लग जाता है।
मंडल ने बताया कि भारत में एनएएफएलडी आबादी के करीब नौ से 32 प्रतिशत हिस्से में पाया जाता है। अध्ययन दल ने दावा किया है कि शर्करा और यकृत में वसा के जमा होने के बीच आणविक संबंध का खुलासा होने से इस रोग का उपचार ईजाद करने में मदद मिलेगी। अध्ययन दल में जामिया हमदर्द इंस्टीट्यूट और एसजीपीजीआई, लखनऊ के शोधार्थी भी शामिल थे।