पापा के एक्सिटेंट से मौत के बाद माँ जो कोमा में गयी दो – तीन दिन पहले ही होश में आईं है पर माँ की आँखों में एक शून्यता और अजनबीपन सा भर गया है ।डॉ का कहना है ” शायद सदमे की वजह से इन्होंने यादाश्त खो दिया है ।”
आज सोचा माँ को कमरे से बाहर खुली हवा में ले चलूँ और हौले से माँ के हाथ को पकड़ धीरे -धीरे टहलने लगा ।माँ भी चुपचाप चल दी ।
माँ तो जैसे बिल्कुल मासूम बच्ची सी तो लग रही थीं । नहीं , बच्ची तो उझलती है – कूदती है, हँसती है- खिलखिलाती है ! पर माँ तोजैसे कहीं गुम सी हो गयी हैं अपनी भावशून्य आँखों और निर्विकार भाव के साथ बस चली जा रहीं है मेरी अंगुली थामे धीरे – धीरे ।एक ममता सी उमड़ आई माँ के लिए।
फिर, अचानक से पापा के स्टडी के पास आकर ठिठक गयी माँ। हौले से कमरे में प्रवेश किया , किताबों की आलमारी ठीक कीं , टेबुल से पापा की डायरी उठा ड्राअर में रख दीं , खिड़की के पर्दे खोल दिये , पापा को बंद कमरे में घुटन सी जो होती थी ।पापा की कुर्सी को एकटक देखती रहीं फिर काँपते हाथोँ से मेरी अंगुली जोर से पकड़ थके कदमों से कमरे से लौट पड़ीं।
पर ! एक प्रश्न मेरी आँखों में आँसूं बन छलक आया क्या माँ सच मे सब कुछ भूल गयी हैं… ?