अखंड है वसुंधरा, अखंड आसमान है,
रूकूँ नही थकूँ नहीं मैं, जब तलक ये प्राण हैं
ह्रदय में एक गान है, कर्म ही प्रधान है…
राहों की सारी अड़चनें, सब धूल के समान हैं
पंख मेरे हैं खुले, स्वतंत्र शंखनाद है
कदम कदम हूं चल रहा, सफर ये बेजुबान है
खोजता हूं चल रहा, कदम के जो निशान हैं
दिख रही हैं मंजिलें, पर लक्ष्य न आसान है
ह्रदय में मेरे एक कतरा, भय का विद्यमान है
ये संकटों की है घड़ी, विपत्तियां महान हैं
खड़ा रहूँगा मैं अडिग, ये मेरा स्वाभिमान है
ह्रदय में एक गान है, कर्म ही प्रधान है ।
उमेश पंसारी
युवा नेतृत्वकर्ता, लेखक एवं
राष्ट्रमंडल स्वर्ण पुरस्कार विजेता