जी हाँ ये एक सच्चाई है देश अगर आर्थिक रूप से कमजोर हो रहा तो इसका असर इनडाइरेक्ट रूप से आप पर पड़ेगा ये डिमांड और सप्लाई की चेन से आप समझ सकते है। दरसल इन दिनों पेट्रोल से लेकर शेयर बाजार तक सब जगह खासा नुकसान हुआ है पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है। वैश्विक शेयर बाज़ारों के लिए बीते कुछ सप्ताह बेहद तनावपूर्ण रहे हैं, और कुछ विशेषज्ञों ने तो मंदी की आहट की चेतावनी भी दी है। लेकिन अगर आप बिज़नेसमैन नहीं बल्कि आम इंसान हैं तो इन हालातों में ‘बाज़ार’ और ‘शेयर’ का आपके लिए क्या मतलब है?
क्योंकि जिस परिस्थिति से शेयर बाज़ार फिलहाल जूझ रहे हैं। आपको लग सकता है कि आपके पास न तो शेयर हैं, और न ही आप कभी शेयर बाज़ार में निवेश करते हैं, इस कारण स्टॉक मार्केट में आ रहे तनाव से आप अछूते रहेंगे, लेकिन पेंशन पाने वाले लाखों लोगों ने अपना पैसा पेशन स्कीमों में लगाया है, और उनके पैसे का मूल्य मौजूदा वक्त में कितना होगा ये पूरी तरह स्टॉक मार्केट पर निर्भर करता है। शेयर की कीमतों में बड़ी गिरावट ऐसे पेंशन भोगियों के लिए बुरी ख़बर हो सकती है।
अगर आपने पेंशन स्कीमों में निवेश नहीं भी किया है, तब भी संभव है कि स्टॉक मार्केट में आ रहे बदलाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर डालें जिससे सभी का जीवन प्रभावित होता है। किसी भी कंपनी का वित्तीय स्वास्थ्य उसके शेयर की क़ीमतों पर निर्भर करता है, जितनी अधिक शेयर की क़ीमत उतना ही अधिक कंपनी का मूल्य इंडेक्स नाम के एक ग्रुप में किसी देश और क्षेत्र की बड़ी कंपनियों की सूची शामिल की जाती है। देश की अर्थव्यवस्था किस हाल में है। शेयरों की क़ीमतें तभी गिरती हैं जब देश में आर्थिक अस्थिरता होती है, जो वित्तीय संकट या कोविड -19 जैसी महामारी के दौरान हो सकती है। इसका मतलब यह है, कि निवेशकों के कंपनियों के शेयर ख़रीदने की संभावना कम है, और उनके अपने पैसे बाज़ार से निकाल लेने की अधिक पहले अमरीका की बात करें जो विश्व के अन्य बाज़ारों को प्रभावित करता है। सोमवार को, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोरोना वायरस के कारण लगाई गई। राष्ट्रव्यापी इमरजेंसी के बारे में कहा कि ये गर्मियों के अंत तक या उससे भी आगे जारी रह सकती है। इससे निवेशकों में ये संकेत गया कि आर्थिक गतिविधि कम से कम अगले चार महीनों तक धीमी ही रहेगी। विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता अमरीका है, और अगर वहां लोग घर से काम करते हैं, और अपना ख़र्च कम कर लेते हैं, तो इसका असर उत्पादन करने वाली और सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियों पर पड़ता है।
हो सकता है, कि ये उपभोक्ता अमरीका में हो लेकिन वो जिस सामान का इस्तेमाल करता है उनका उत्पादन अमरीका में या फिर उसमें से कुछ का उत्पादन भारत और चीन में होता हो। मांग में कमी आई तो उसका असर इन देशों में काम करने वालों पर पड़ता है। ऐपल, नाइकी और माइक्रोसॉफ्ट जैसी दर्जनों बड़ी कंपनियां पहले ही चेतावनी दे चुकी हैं, कि महामारी की मार उनके राजस्व पर पड़ेगी।
इन कंपनियों ने कहा है कि उत्पादन में कटौती या इमारतों को बंद किया जा सकता है।
लेकिन सभी जानते हैं, कि कंपनियों को चलाए रखने के लिए आमतौर पर सबसे पहले नौकरियां ही जाती हैं। तो ऐसे में स्थिति और बिगड़ी तो वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं और उद्योगों पर प्रभाव पड़ सकता है, और शायद आपकी नौकरी पर भी। इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं, कि आर्थिक रूप से पुरुष और महिलाएं इस महामारी से अलग-अलग तरीक़े से प्रभावित हो सकते हैं।
लंदन में मौजूद एक स्वतंत्र थिंक-टैंक ओवरसीज़ डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट के अर्थशास्त्री और वरिष्ठ शोध अधिकारी शेर्लिन रागस कहती हैं, “ये कहना अभी जल्दबाज़ी होगा कि दोनों पर पड़ने वाले असर में फर्क होगा या नही”। महामारी से कौन से उद्योग प्रभावित हो सकते हैं और क्या इसका जेंडर और कल्चरल असर होगा। इथियोपिया, इटली या कंबोडिया जैसे देशों में जहां बड़े पैमाने पर कपड़ा उद्योग में महिलाएं काम करती हैं, वैश्विक आर्थिक मंदी के दौरान, लोग तो कम पैसा ख़र्च करते ही हैं, निवेश भी कम होता है जिसका सीधा असर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। निम्न-मध्य आय वाले देशों को आमतौर पर उभरते बाज़ारों के रूप में देखा जाता है। इन बाज़ारों में निवेश करने में अधिक जोखिम तो होता ही है, लेकिन फिर भी बड़ा फ़ायदा होने की भी संभावना रहती है। रागस कहती हैं, उभरते बाज़ारों में आमतौर पर ब्याज दर अधिक होती है और जब वैश्विक बाज़ार स्थिर होते हैं तब निवेशक काफ़ी पैसा कमा सकते हैं। लेकिन जब वैश्विक बाज़ार उथल-पुथल होता है, तो निवेशक आमतौर पर उभरते बाज़ारों से बाहर निकलना चाहते हैं। वो कहती हैं, निवेश कम होता है। ऐसा दिखता है, कि देश आर्थिक रूप से मज़बूत स्थिति में नहीं है, और इस कारण मुद्रा कमज़ोर होने लगती है, और मुद्रा की कमज़ोर स्थिति का मतलब होता है, कि महंगाई बढ़ने लगेगी। विकासशील देशों के लिए उधार लेना आम बात है, और उसके लिए कमज़ोर मुद्रा का मतलब है कि इस पैसे का भुगतान करने में देश को ज़्यादा संघर्ष करना होगा। इस परिस्थिति में सरकारों को स्वास्थ्य और सामाजिक सेवा में किए जाने वाले ख़र्च में कटौती करनी पड़ सकती है। उत्पादन, आयात और निर्यात के क्षेत्र में आ रही मंदी अलग-अलग देशों को अलग-अलग रूप से प्रभावित करेगी। लेकिन ये इस बात पर निर्भर करता है कि ये देश उन पर कितना निर्भर हैं। रागस कहती हैं, “नाइजीरिया, अंगोला और मंगोलिया जैसे तेल निर्यातकों को निर्यात से होने वाले राजस्व में भारी कमी देखने को मिल सकती है। इसके असर से वहां की मुद्रा कमज़ोर हो सकती है। ओडीआई के अनुसार, अंगोला जितने तेल का उत्पादन करता है। उसका 60 फ़ीसदी चीन को निर्यात करता है। लेकिन आयात-निर्यात पर असर पड़ा तो इसका बड़ा असर उसकी अर्थव्यवस्था पर होगा।
वो कहती हैं, “अफ़्रीका जैसी जगहों में खाद्य संकट जैसी अन्य अप्रत्याशित समस्या भी पैदा हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि अफ़्रीका संसाधनों का निर्यात करता है।
वो बड़े पैमाने पर खाने के सामान का आयात करता है।अफ़्रीका डेवेलपमेंट बैंक के अनुसार अफ़्रीका हर साल 35 अरब डॉलर की क़ीमत का खाने का सामान आयात करता है। कोविड -19 के कारण पैदा हुई वैश्विक मंदी की स्थिति का असर सप्लाई चेन पर होगा। और इससे आयात अधिक महंगा हो जाएगा और निर्यात के माध्यम से पैसा बहुत कम मिलेगा। जब लाखों की संख्या में लोगों की नौकरियों पर ख़तरा मंडरा रहा हो और उनकी जान भी जोखिम में हो तो ऐसे में ये कहना मुश्किल है, कि कोरोना वायरस महमारी से किसी का भला भी होगा। अगर केवल निवेश के बारे में देखा जाए तो शेयर की क़ीमतें कम होना शेयर ख़रीदने का एक सुनहरा मौक़ा है, इस उम्मीद के साथ कि मार्केट स्थिर होगा तो शेयर की क़ीमतें बढ़ेंगी। शेयर तभी अधिक लाभ देती है जब उसकी क़ीमतें सबसे कम हों। जानकारों की चेतावनी है, जो भी अभी निवेश करना चाहते हैं। उन्हें समझना चाहिए, कि वो कितने वक्त के लिए अपने निवेश को गिरता हुआ देखने के लिए तैयार हैं, और वो ये भी सुनिश्चित करें। अतः आप अपना सारा पैसा एक ही जगह पर न लगाएं। विश्व में बेरोजगार नव युवक व युवतियों के लिए भी यह काफी चुनौतीपूर्ण होगा।