ब्रह्मा से अमरत्व लेकर,
शिव से वरदान भी ।
हुआ था अजेय रावण ,
था उसे अभिमान भी,
शक्ति से संपन्न था वह ,
वेद भी उसे ज्ञात था ।
पर- स्त्री -हरण का लेकिन ,
उसने किया अपराध था ।
है कौन वह जो इस धरा पर ,
राज करता ही रहे ।
मुकुट जिसके भाल का,
जगमग झलकता ही रहे ।
रणबांकुरे हुए बहुत से ,
पर समय सबका जाता है ।
जो समय रहते संभल जाए ,
पहचान जग में पाता है ।
विनाश काले विपरीत बुद्धि ,
नाश का कारण बना ।
अधर्म का बन के पथिक,
कुल सहित नाश रावण हुआ ।
धर्म पथ पर चलते हुए ,
वंदनीय है श्री राम ।
धैर्य को धारण किए हैं ,
मर्यादा पुरुषोत्तम राम!
वासव मधुप