दिन को यूं गुजारकर क्या करना,
किसी को सुधारकर क्या करना!
जो मान जाये बात तो बेहतर है,
दबाव किसी पर बनाकर क्या करना!
बहुत तो तरक्की कर ली है सबने,
दिन पुरानें याद दिलाकर क्या करना!
कुछ तो कमी है आज भी उनमें,
कमी उनकी निकालकर क्या करना!
धीरे धीरे हो जायेगे वे और काबिल,
सलाह मेरी उन्हें मानकर क्या करना!
फिर भी पूछेगे वे कुछ तो ‘ललित’ से,
भ्रम ये दिमाग से निकालकर क्या करना!
ललित सिंह, रायबरेली