जानकी या सीता का नाम रखना क्या अभिशाप है? क्या हर जानकी को राम की पत्नी-सी ही आजीवन दुख झेलना पड़ेगा ? जानकी गहरी सोच में डूबी हुई थी। अगले पहर के भोजन की व्यवस्था कैसे की जाए-यही चिंता उसे सता रही थी। अपने चार मासूम छोटे-छोटे बच्चों के भूख से तड़पते चेहरे उससे देखे नहीं जा रहे थे । शादी कर जिस पति के भरोसे वह इस घर आई थी वह सपनों का महल अब मानो ढह चुका था।
कितना समृद्ध था उसके बचपन का जीवन! वह सौ तोला सोने के गहने, दो किलो चांदी के बरतन और अनेक सामग्री दहेज सहित शादी कर विदा की गई थी। दामाद रेल्वे में कार्यरत था और सरकारी नौकरी सुरक्षित होती है -इस विचार से उसके माता-पिता निश्चिंत थे। उनका जीवन पटरी पर बखूबी चल रहा था और जानकी के चार बच्चे भी हो गए।
भाग्य विधाता के खेल का क्या कहे? उसके पति हरि को कार्यालय में मजदूर संघ का नेता बना दिया गया। जब वेतन बढ़ावे की मांग करते हुए जुलूस निकाला गया तो मजदूरों का आक्रोश बढ़ा हुआ था। वे काफी तोड़-फोड़ करने लगे तो उनके नेता सहित सभी हिरासत में लिए गए और निलंबित कर दिए गए। केस चला तो कुछ ही महीनों में उनके विरुद्ध निर्णय निकला और वे सभी नौकरी से बखऱ्ास्त कर दिए गए।
अब मन का मारा हरि बुरी संगति में पड़ गया और नियमित तौर से घर भी न आता था। जानकी उसकी राह देखती थक जाती। अपनी चीनी-चुपड़ी बातों से यद्यपि वह जानकी को सांत्वना देता था कि वह दूसरी नौकरी की खोज में है जो जल्दी मिल जाएगी और उनकी मुसीबतें दूर हो जाएंगी, पर वास्तव में ऐसा कुछ न होने वाला था।
अब वह ज्योतिषी बनने का ढोंग रचाने लगा। हर प्रदर्शिनी में एक फलक पर मशहूर ज्योतिषी हरि का नाम लिख रखता और हाथ का चित्र बना रखता। लोग उसका विश्वास कर उसे अपनी हथेली की लकीरें दिखाते और वह अपनी मनमानी बातें बताता। कुछ लोगों को उसकी भविष्यवाणी सच निकलीं तो वे अन्य लोगों को बताते गए और वह एक मशहूर ज्योतिषी बन गया। फिर भी उसके घर की आर्थिक स्थिति सुधरी नहीं। वह इस पेशे से मिलते पैसों से अय्याशी करने लगता और बचे-कुचे पैसों से घर का व्यंजन खरीदता। उसके बच्चे अधनंगे हों या भूखे रोएं-उसपर कोई प्रभाव न होता।
अब जानकी से यह स्थिति देखी न गई। उसने कुछ न कुछ करने की ठान ली। वह पहले तो रसोइन का काम करने लगी। वह स्वादिष्ट भोजन पकाने में माहिर थी और इस पेशे में जल्द ही सफलता हासिल करने लगी। कई सिनेमा के अभिनेता भी उसे अपने घरों में रसोई का काम सौंपने लगे और वह काफी कुशलता से संभालती। बैंक में नौकरी करते उसके देवर ने उसे एक ग्राइंडर भी दिला दी जिससे वह इडली-दोसा का आटा भी पीस कर बेचने लगी। इन्हीं पैसों से वह अपने बच्चों की हर जरूरत पूरी करती। उसका पतिदेव महीने,दो महीने में एक बार आता,बड़े-बड़े नेताओं के संग खींची तस्वीरें दिखाकर खूब रौब जमाता। अपने बच्चों का मन बहलाता,पर शीघ्र ही निकल जाता।
जानकी के बच्चे काफी होशियार निकले और जानकी की कड़ी मेहनत आखिर रंग लाई। अच्छे अंक पाकर ज्येष्ठ बेटे ने रेल्वे में ही नौकरी हासिल कर ली। जानकी की खुशी का ठिकाना न रहा। जिस नौकरी से उसके पति को हाथ धोना पड़ा,अब वही उसके बेटे को मिल गई है, इस खुशी से जानकी की आंखों में आंसू भर आए। डूबते को तिनका ही सही, सहारा तो मिल गया। फिर भी जानकी ने अपने रसोई का काम जारी रखा और पैसे बचाती गई। ईश्वर की कृपा से उसने अपनी तीनों बेटियों की शादी भी करवा दी। सिनेमा के अभिनेताओं से भी उसे इनके लिए खूब आर्थिक सहायता मिली।
जानकी स्वभाव से एक हंसमुख चेहरे वाली थी जिसे देखकर किसी को एहसास तक न होता था कि वह अपने निजी जीवन में इतना कुछ झेल रही है। वह अपने घर आए हर अतिथि का बड़े प्यार से अतिथि सत्कार करती और उन्हें खूब खिलाती-पिलाती। पर दुभाग्र्य ने मानो उसका पीछा न छोड़ा। उसे सूचना मिली कि किसी अन्य प्रदेश में उसके पति का देहांत हो गया। अब विधवा का ठप्पा भी उसे झेलने की नौबत आई।
पर नारी शक्ति स्वरूपा होती है और ईश्वर ने उसे हर हादसे को झेलने और लांघने की शक्ति और मनोबल उसमें निहित है। पति केे होते हुए भी उसे कोई सहारा न मिला,अब उनकी मृत्यु पर यद्यपि जानकी को अपना विधवापन बोझिल लगा उसने कमरतोड़ परिश्रम कर अपने बच्चों के लिए माता-पिता दोनों की भूमिका यथावत् निभाना जारी रखा। अपने जीवन के संध्याकाल में भी उसने अपनी रोटी खुद कमाने और अपने बच्चों का मोहताज न बनने का निर्णय लिया। अस्सी साल की उम्र में भी वह रसोइन का काम कर कमा लेती है और हर जगह उसे खूब प्यार मिलता है। लोग उसे अम्मा कहकर ही संबोधित करते हैं। जानकी ने यह साबित कर दिया कि जानकी हो या सीता-हर नारी कठोर से कठोरतम परिस्थितियों से उबरकर आगे बढ़ सकती है और उसे किसी के मोहताज रह जीने की आवश्यकता नहीं- जिस तरह देवी सीता ने अकेले ही अपने दोनों बेटों की परवरिश जंगल मे की थी और वे उन्हें हर कला में निपुण बनाने में कामयाब रहीं। गर्भावस्था में जंगल में परित्याग के कष्ट ने उन्हें लेशमात्र भी विचलित नहीं किया। जानकी को अपने जैसे स्त्री वर्ग पर गर्व महसूस होे रहा था जो उसके विचार से सीता माता की प्रतिमूर्ति ही थीं।
जमुना कृष्णराज