प्रदेश की सबसे हाईटेक सुरक्षा से लैस रगौली जेल यानी कैदियों का यह लाक्षागृह कैसे टूट गया? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पूरे घटनाक्रम की रिपोर्ट मिल चुकी है। रिपोर्ट पर गौर करें तो यह खूनी खेल सुनियोजित साजिश था, जिसका सूत्रधार सीतापुर का शार्प शूटर अंशुल दीक्षित उर्फ अंशू उर्फ सुमित था। इस सनसनीखेज वारदात ने बागपत जेल में 9 जुलाई 2018 को पूर्वांचल के डॉन मुन्ना बजरंगी की हत्या की घटना को दोहरा दिया।
अंशुल को 9 दिसंबर 2019 में रायबरेली जेल से रगौली (चित्रकूट) जेल शिफ्ट किया गया था। 14 मई तक यानी 523 दिनों में शातिर अंशुल जेल के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हो चुका था। उसने पुलिस की ‘अंधी तीसरी आंख’ के बीच हथियार अपने पास मंगवा लिया। मात्र कुछ मिनटों में ही मेराजुद्दीन और मुकीम काला को मौत के घाट उतार दिया। हालांकि पुलिस 90 मिनट के इस खूनी खेल को तब रोक पाई जब अंशुल को मार गिराया। रायबरेली जेल में 50 दिन रहे अंशुल ने वहां जेल प्रशासन को छका लिया था। जेल में अपने साथियों के साथ धड़ाधड़ वीडियो वायरल करता रहा। इसके बाद ही उसे रगौली शिफ्ट किया गया था। इतने शातिर अपराधी की करतूतों के बावजूद जेल प्रशासन बेफिक्र बना रहा।
चूक-1
सीसीटीवी दो महीने से खराब
खूनी खेल की रिपोर्ट चित्रकूट के कमिश्नर डीके सिंह, आईजी के. सत्यनारायण और डीआईजी जेल मुख्यालय संजीव त्रिपाठी ने तैयार कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक सबसे पहले गैंगवार के समय ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों से पूछताछ की गई। उसके बाद जब हाई सिक्योरिटी सेल की सुरक्षा-व्यवस्था को चेक किया गया तो पता चला कि वहां का कोई सीसीटीवी कैमरा काम ही नहीं कर रहा है। यहां तक जिस सेल में अंशुल कैद था, उसकी पहरेदारी के लिए लगे कैमरे भी दो महीने से खराब थे। इनके मेंटीनेंस की जिम्मेदारी कैमरे लगाने वाली एजेंसी की थी जिसने जेल की तरफ से की गईं शिकायतों के बाद भी कैमरे ठीक नहीं किए। जेल प्रशासन ने इस पर लापरवाही बरती, संबंधित एजेंसी के खिलाफ कोई लिखापढ़ी नहीं की न ही कैमरों को लेकर गंभीरता दिखाई।
चूक-2
सेल से कैसे बाहर आया अंशुल
जांच रिपोर्ट के अनुसार, गैंगवार की घटना को सुरक्षित जगह पर अंजाम दिया गया। बाहर कड़ी सुरक्षा के बीच अंशुल की सेल में 9 एमएम की पिस्टल पहुंचाई गई। शुक्रवार सुबह उसने पहले मेराजुद्दीन उर्फ मेराज को मौत के घाट उतारा फिर खुद सेल के बाहर निकलकर 50 मीटर दूर दूसरी सेल में पहुंचा और वहां कैद मुकीम काला को भून डाला। अंशुल अपनी सेल से बाहर कैसे निकला, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक उस समय अंशुल की आंखों में खून सवार था। दो कुख्यात अपराधियों को भूनने के बाद वह वापस अपनी सेल की तरफ बढ़ा और पांच बंदियों को ढाल बनाकर जेल से बाहर निकलने या और कुछ बड़ा करने की फिराक में था। 90 मिनट तक चले इस खूनी तांडव के दौरान पुलिसकर्मियों के ललकारने पर अंशुल ने जवाब गोलियों से दिया, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने उसे मार गिराया।
चूक-3
अंशुल बचता तो बहुत कुछ पता चलता
क्या एक कुख्यात को काबू करना पुलिस के लिए इतना मुश्किल था कि उसे गोली मारनी पड़ी, जबकि कुछ देर में ही वहां पर कई सैकड़ा पुलिस जवान पहुंच चुके थे। जरूरत पड़ने पर एसटीएफ और एटीएस जैसी एजेंसियों की मदद भी ली जा सकती थी। अंशुल जिंदा पकड़ा जाता तो जेल की सुरक्षा में सेंध लगाने वाले नेटवर्क का पता चल चलता।
चूक-4
मुख्तार पर निगहबानी, अंशुल पर बेफिक्री
एक तरफ रगौली जेल में बेपरवाही और 82 किलोमीटर दूर बांदा जेल में मुख्तार के पल-पल की खबर सीसीटीवी से रखी जा रही है। आखिर अंशुल और मुख्तार के खास मेराज को लेकर जेल प्रशासन इतना बेपरवाह क्यों था। उसे हाई सिक्योरिटी सेल में रखने के बाद भी निगरानी नहीं थी। जांच में अभी साफ नहीं हो सका है कि आखिर अंशुल ने मुकीम और मेराजुद्दीन को क्यों मारा। जांच करने वाले तीनों बड़े अधिकारी बस इतना कह सके हैं कि तीनों एक दूसरे को ठीक से नहीं जानते थे।
रायबरेली जेल में सबको छकाया
अंशुल रायबरेली कारागार में करीब 50 दिन रहा। इतने दिनों में ही उसने अपने साथियों के साथ मिलकर जेल के भीतर अनुशासन की धज्जियां उड़ा दी थीं। मजबूरन उसे प्रदेश की सबसे हाईटेक जेल चित्रकूट भेजा गया था। उसे लखनऊ जेल से 30 सितंबर 2018 को रायबरेली जेल लाया गया। यहां उसने शातिर बदमाश दलश्रृंगार सिंह और सोहराब के साथ मिलकर कई वीडियो बनाए। इन वीडियो के बल पर वह जेल के अफसरों को ब्लैकमेल करने लगा। बात जब सिर के ऊपर से गुजरी तो उसे व उसके साथियों को 20 नवंबर 2018 को प्रतापगढ़ जेल शिफ्ट कर दिया गया। अंशूल ने चालाकी दिखाई 25 और 26 नवंबर को उसने छह वीडियो वायरल किए। इनमें से एक वीडियो में उसने खुद की जान को खतरा बताया। इसके बाद उसे 9दिसंबर 2019 को चित्रकूट जेल भेजा गया।
हर बैरक में दो-दो सीसीटीवी कैमरे
चित्रकूट की जिला कारागार अत्याधुनिक जेलों में से एक है। दस्यु प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से इस जेल में काफी संख्या में इनामी डकैत भी बंद हैं। जेल में निगरानी के लिए प्रत्येक बैरक में दो-दो सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। कुल 817 बंदियों की क्षमता वाली इस जेल में मौजूदा समय पर साढ़े छह सौ बंदी हैं। कुख्यात बंदियों के लिए यहां पर अलग से बैरक बनी है, जबकि सामान्य बंदियों की बैरकें अलग हैं। जेल में डिंबल कैमरे लगाए गए थे, जो कि तेज हवा, बारिश के दौरान भी साफ तस्वीर को कैद करने की क्षमता रखते है लेकिन अधिकतर खराब पड़े हैं।
जिला कारागार का सुरक्षा चक्र
बैरक- 09
सीसीटीवी कैमरे- 32
जेल अधीक्षक, जेलर के अलावा दो डिप्टी जेलर
अतिरिक्त सुरक्षा- बाहर डेढ़ सेक्शन पीएसी