ब्लैक फंगस से महिला की मौत के बाद राजधानी लखनऊ में मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है। इसके साथ ही ब्लैक फंगस के इलाज में दी जाने वाली दवाओं की कालाबाजारी भी शुरू हो गई है। मेडिकल स्टोरों से ब्लैक फंगस की दवाएं नदारद हैं। परेशान मरीज और तीमारदार महंगी दवा खरीदने को विवश हो रहे हैं। लखनऊ में ब्लैक फंगस के 16 मरीजों का इलाज चल रहा है। इसमें से 13 मरीज केजीएमयू और तीन लोहिया संस्थान में भर्ती हैं।
रेमडेसिविर के बाद ब्लैक फंगस के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं की कालाबाजारी शुरू हो गई है। दवाओं की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। डॉक्टरों के मुताबिक ब्लैक फंगस बीमारी में सबसे ज्यादा अम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन अधिक प्रभावी है। बाजार में इंजेक्शन का जबरदस्त संकट है। यही नहीं आइसोकोनाजोल की गोली भी असरदार है। यह दवा मरीज को 14 दिन तक लेनी पड़ती है। पोसोकोनाजोल सिरप और वोरिकोनाज़ॉल की गोलियां भी बाजार में नहीं मिल पा रही हैं। इलाज में इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शन की कालाबाजारी शुरू हो गई है। दो हजार रुपये वाला अम्फोटेरिसिन बी इंजेक्शन आठ हजार का मिल रहा है। लखनऊ केमिस्ट एसोसिएशन के प्रवक्ता मयंक रस्तोगी ने कहा कि सिरप 19 हजार व 10 गोलियों का पत्ता चार हजार रुपये में मिल रहा है।
इलाज के इंतजाम में देर न करें: योगी
शनिवार को टीम 9 की बैठक में मुख्यमंत्री ने प्रदेश में ब्लैक फंगस की स्थिति की जानकारी लेते हुए इस मामले में प्रो-एक्टिव रहने के निर्देश दिए हैं। सीएम ने कहा कि विशेषज्ञों के मुताबिक कोविड से उपचारित मरीजों खासकर अनियंत्रित मधुमेह की समस्या से जूझ रहे लोगों में ब्लैक फंगस की समस्या देखने में आई है। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा शिक्षा विभाग को निर्देश दिए कि विशेषज्ञों के परामर्श के अनुसार इसके उपचार में उपयोगी दवाओं की उपलब्धता तत्काल सुनिश्चित कराई जाए। लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए जरूरी गाइड लाइन जारी कर दी जाए।