पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद हुई हिंसा को लेकर भाजपा आक्रामक जरूर है, लेकिन पार्टी में परिणामों को लेकर भी मंथन हो रहा है। चुनाव में भाजपा को महिलाओं और युवाओं (एम-वाई समीकरण) पर सबसे ज्यादा भरोसा था, लेकिन पार्टी को दोनों वर्गों का उतना समर्थन नहीं मिला, जिससे कि वह सरकार बनाने के करीब पहुंच सके। इसके विपरीत ममता बनर्जी बड़ी संख्या में महिलाओं और युवाओं को अपने साथ जोड़ने में सफल रहीं।
भाजपा की उम्मीदों के विपरीत आए नतीजों को लेकर पार्टी के भीतर नेताओं का अपना-अपना आकलन है। उत्तर भारत में आमतौर पर एम-वाई समीकरण का मतलब मुस्लिम और यादव माना जाता है, जो अधिकांश भाजपा के खिलाफ रहा है। हालांकि, पश्चिम बंगाल में एम-वाई का यह अर्थ नहीं है। राज्य में जो नतीजे सामने आए हैं, उसमें महिला (एम) और युवा (वाई) समीकरण भाजपा के गणित के अनुरूप नहीं रहे। भाजपा ने इन दोनों वर्गों पर सबसे ज्यादा दांव लगा रखा था।हिंदी न्यूज़ › पश्चिम बंगाल › पश्चिम बंगाल में 6 M और 1 Y समीकरण ने कैसे बिगाड़ा भाजपा का गणित? जानें हार के बड़े फैक्टर
पश्चिम बंगाल में 6 M और 1 Y समीकरण ने कैसे बिगाड़ा भाजपा का गणित? जानें हार के बड़े फैक्टर
रामनारायण श्रीवास्तव ,नई दिल्ली | Published By: Shankar Pandit
Last updated: Thu, 06 May 2021 06:41 AM
prime minister narendra modi and home minister amit shah
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद हुई हिंसा को लेकर भाजपा आक्रामक जरूर है, लेकिन पार्टी में परिणामों को लेकर भी मंथन हो रहा है। चुनाव में भाजपा को महिलाओं और युवाओं (एम-वाई समीकरण) पर सबसे ज्यादा भरोसा था, लेकिन पार्टी को दोनों वर्गों का उतना समर्थन नहीं मिला, जिससे कि वह सरकार बनाने के करीब पहुंच सके। इसके विपरीत ममता बनर्जी बड़ी संख्या में महिलाओं और युवाओं को अपने साथ जोड़ने में सफल रहीं।
भाजपा की उम्मीदों के विपरीत आए नतीजों को लेकर पार्टी के भीतर नेताओं का अपना-अपना आकलन है। उत्तर भारत में आमतौर पर एम-वाई समीकरण का मतलब मुस्लिम और यादव माना जाता है, जो अधिकांश भाजपा के खिलाफ रहा है। हालांकि, पश्चिम बंगाल में एम-वाई का यह अर्थ नहीं है। राज्य में जो नतीजे सामने आए हैं, उसमें महिला (एम) और युवा (वाई) समीकरण भाजपा के गणित के अनुरूप नहीं रहे। भाजपा ने इन दोनों वर्गों पर सबसे ज्यादा दांव लगा रखा था।
छह ‘एम’ एक ‘वाई’ से बिगड़ा खेल
दरअसल, बंगाल चुनाव में छह ‘एम’ और एक ‘वाई’ फैक्टर हावी रहा। पूरा चुनाव इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमता रहा। ये फैक्टर मोदी, ममता, मुस्लिम, महिला, मध्यम वर्ग, मतुआ और युवा रहे। ममता और मोदी के बीच तो व्यक्तित्व व वर्चस्व का टकराव रहा था, जो चुनाव के बाद खत्म हो गया है। उसी तरह मतुआ फैक्टर भी दूसरे राज्यों में नहीं होगा। मुस्लिम समुदाय वैसे ही भाजपा के खिलाफ रहता है और मध्यम वर्ग हर राज्य में अपने हिसाब से भूमिका तय करता है। लेकिन महिला और युवा ऐसा वर्ग है, जिसने 2014 के बाद से अधिकांश मौकों पर भाजपा का साथ दिया और केंद्र से लेकर कई राज्यों तक में भाजपा की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई है।
राज्य में मिली निराशा
पश्चिम बंगाल में भी भाजपा को इन दो फेक्टर पर सबसे ज्यादा भरोसा था, लेकिन ममता को अपनी सरकार की तरफ से महिलाओं के हित के लिए चलाई गई योजनाओं का लाभ मिला। वहीं, युवा कहीं न कहीं क्षेत्रीय अस्मिता के साथ ज्यादा जुड़े। ममता के नेतृत्व में पिछले दस वर्षों में बंगाल में चलाई गई सबूज साथी, मां किचन, दवरे सरकार जैसी गरीब कल्याणकारी योजनाओं का फायदा भी तृणमूल को मिला। इसके अलावा भाजपा नेताओं ने ममता पर जिस तरह से तीखे हमले किए, उससे भी राज्य की महिलाओं में उनके प्रति सहानुभूति पैदा हुई। ‘बंगाल की बेटी’ का मुद्दा भी ममता को फायदा दे गया।
चिंता उत्तर प्रदेश की
भाजपा के लिए बंगाल के बाद भी कई चुनाव हैं। वहां पर उसकी रणनीति के महत्वपूर्ण बिंदु महिला और युवा ही रहेंगे। ऐसे में इन वर्गों को अपने साथ जोड़े रखना बड़ी चुनौती है। खासकर उत्तर प्रदेश में जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। वहां का एम-वाई यानी मुसलमान और यादव समीकरण भाजपा के खिलाफ रहता है। ऐसे में युवा और महिला समीकरण को साधना भाजपा के लिए काफी अहम होगा।