छत्तीसगढ़
संपर्क भाषा भारती वेब-पोर्टल को राजस्थान से प्रतिनिधियों की आवश्यकता है…
भारत का राज्य
राजधानी रायपुर(नवा रायपुर अटल नगर)
सबसे बड़ा शहर रायपुर
जनसंख्या 2,55,45,198
- घनत्व 189 /किमी²
क्षेत्रफल 1,35,192 किमी² - ज़िले 28
राजभाषा हिन्दी, छत्तीसगढ़ी[1]
गठन 1 नवम्बर 2000
सरकार छत्तीसगढ़ सरकार - विधानमण्डल एकसदनीय
विधान सभा (90 सीटें) - भारतीय संसद राज्य सभा (5 सीटें)
लोक सभा (11 सीटें) - उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर
डाक सूचक संख्या 49
वाहन अक्षर CG
आइएसओ 3166-2 IN-CT
cgstate.gov.in
छत्तीसगढ़ भारत का एक राज्य है। इसका गठन 1 नवम्बर 2000 को हुआ था और यह भारत का 26वां राज्य है। पहले यह मध्य प्रदेश के अन्तर्गत था। डॉ॰ हीरालाल के मतानुसार छत्तीसगढ़ ‘चेदीशगढ़’ का अपभ्रंश हो सकता है। कहते हैं किसी समय इस क्षेत्र में 36 गढ़ थे, इसीलिये इसका नाम छत्तीसगढ़ पड़ा। किंतु गढ़ों की संख्या में वृद्धि हो जाने पर भी नाम में कोई परिवर्तन नहीं हुआ,छत्तीसगढ़ भारत का ऐसा राज्य है जिसे ‘महतारी'(मां) का दर्जा दिया गया है।[2]भारत में दो क्षेत्र ऐसे हैं जिनका नाम विशेष कारणों से बदल गया – एक तो ‘मगध’ जो बौद्ध विहारों की अधिकता के कारण “बिहार” बन गया और दूसरा ‘दक्षिण कौशल’ जो छत्तीस गढ़ों को अपने में समाहित रखने के कारण “छत्तीसगढ़” बन गया। किन्तु ये दोनों ही क्षेत्र अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारत को गौरवान्वित करते रहे हैं। “छत्तीसगढ़” तो वैदिक और पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केन्द्र रहा है। यहाँ के प्राचीन मन्दिर तथा उनके भग्नावशेष इंगित करते हैं कि यहाँ पर वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध संस्कृतियों का विभिन्न कालों में प्रभाव रहा है। एक संसाधन संपन्न राज्य, यह देश के लिए बिजली और इस्पात का एक स्रोत है, जिसका उत्पादन कुल स्टील का 15% है।[3]छत्तीसगढ़ भारत में सबसे तेजी से विकसित राज्यों में से एक है।[4]
इतिहास
मुख्य लेख: रामायणकालीन छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल के दक्षिण कोशल का एक हिस्सा है और इसका इतिहास पौराणिक काल तक पीछे की ओर चला जाता है। पौराणिक काल का ‘कोशल’ प्रदेश, कालान्तर में ‘उत्तर कोशल’ और ‘दक्षिण कोशल’ नाम से दो भागों में विभक्त हो गया था इसी का ‘दक्षिण कोशल’ वर्तमान छत्तीसगढ़ कहलाता है। इस क्षेत्र के महानदी (जिसका नाम उस काल में ‘चित्रोत्पला’ था) का मत्स्य पुराण[क], महाभारत[ख] के भीष्म पर्व तथा ब्रह्म पुराण[ग] के भारतवर्ष वर्णन प्रकरण में उल्लेख है। वाल्मीकि रामायण में भी छत्तीसगढ़ के बीहड़ वनों तथा महानदी का स्पष्ट विवरण है। स्थित सिहावा पर्वत के आश्रम में निवास करने वाले श्रृंगी ऋषि ने ही अयोध्या में राजा दशरथ के यहाँ पुत्र्येष्टि यज्ञ करवाया था जिससे कि तीनों भाइयों सहित भगवान श्री राम का पृथ्वी पर अवतार हुआ। राम के काल में यहाँ के वनों में ऋषि-मुनि-तपस्वी आश्रम बना कर निवास करते थे और अपने वनवास की अवधि में राम यहाँ आये थे।
इतिहास में इसके प्राचीनतम उल्लेख सन 639 ई0 में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्मवेनसांग के यात्रा विवरण में मिलते हैं। उनकी यात्रा विवरण में लिखा है कि दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी। बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक बोधिसत्व नागार्जुन का आश्रम सिरपुर (श्रीपुर) में ही था। इस समय छत्तीसगढ़ पर सातवाहन वंश की एक शाखा का शासन था। महाकवि कालिदास का जन्म भी छत्तीसगढ़ में हुआ माना जाता है। प्राचीन काल में दक्षिण-कौसल के नाम से प्रसिद्ध इस प्रदेश में मौर्यों, सातवाहनों, वकाटकों, गुप्तों, राजर्षितुल्य कुल, शरभपुरीय वंशों, सोमवंशियों, नल वंशियों, कलचुरियों का शासन था। छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय राजवंशो का शासन भी कई जगहों पर मौजूद था। क्षेत्रिय राजवंशों में प्रमुख थे: बस्तर के नल और नाग वंश, कांकेर के सोमवंशी और कवर्धा के फणि-नाग वंशी। बिलासपुर जिले के पास स्थित कवर्धा रियासत में चौरा नाम का एक मंदिर है जिसे लोग मंडवा-महल भी कहा जाता है। इस मंदिर में सन् 1349 ई. का एक शिलालेख है जिसमें नाग वंश के राजाओं की वंशावली दी गयी है। नाग वंश के राजा रामचन्द्र ने यह लेख खुदवाया था। इस वंश के प्रथम राजा अहिराज कहे जाते हैं। भोरमदेव के क्षेत्र पर इस नागवंश का राजत्व 14 वीं सदी तक कायम रहा।
भूगोल
छत्तीसगढ़ के उत्तर में उत्तर प्रदेश और उत्तर-पश्चिम में मध्यप्रदेश का शहडोल संभाग, उत्तर-पूर्व में उड़ीसा और झारखंड, दक्षिण में तेलंगाना और पश्चिम में महाराष्ट्र राज्य स्थित हैं। यह प्रदेश ऊँची नीची पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ घने जंगलों वाला राज्य है। यहाँ साल, सागौन, साजा और बीजा और बाँस के वृक्षों की अधिकता है। यहाँ सबसे ज्यादा मिस्रित वन पाया जाता है। सागौन की कुछ उन्नत किस्म भी छत्तीसगढ़ के वनो में पायी जाती है। छत्तीसगढ़ क्षेत्र के बीच में महानदी और उसकी सहायक नदियाँ एक विशाल और उपजाऊ मैदान का निर्माण करती हैं, जो लगभग 80 कि॰मी॰ चौड़ा और 322 कि॰मी॰ लम्बा है। समुद्र सतह से यह मैदान करीब 300 मीटर ऊँचा है। इस मैदान के पश्चिम में महानदी तथा शिवनाथ का दोआब है। इस मैदानी क्षेत्र के भीतर हैं रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर जिले के दक्षिणी भाग। धान की भरपूर पैदावार के कारण इसे धान का कटोरा भी कहा जाता है। मैदानी क्षेत्र के उत्तर में है मैकल पर्वत शृंखला। सरगुजा की उच्चतम भूमि ईशान कोण में है। पूर्व में उड़ीसा की छोटी-बड़ी पहाड़ियाँ हैं और आग्नेय में सिहावा के पर्वत शृंग है। दक्षिण में बस्तर भी गिरि-मालाओं से भरा हुआ है। छत्तीसगढ़ के तीन प्राकृतिक खण्ड हैं : उत्तर में सतपुड़ा, मध्य में महानदी और उसकी सहायक नदियों का मैदानी क्षेत्र और दक्षिण में बस्तर का पठार। राज्य की प्रमुख नदियाँ हैं – महानदी, शिवनाथ, खारुन, अरपा, पैरी तथा इंद्रावती नदी।[5]
छत्तीसगढ़ का विभाजन
एक नये राज्य छत्तीसगढ़ की शुरुआती मांग सन 1920 में उठी। इसी प्रकार की अनेक मांगें उठती रही लेकिन कभी एक संगठित रूप से कोइ मांग नहीं की गयी। संगठित रूप से पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की सर्वप्रथम 1924 में रायपुर की कांग्रेस यूनीट द्वारा की गयी और बाद में त्रिपुरा में भारतीय कांग्रेस की वार्षिक सत्र में चर्चा की गयी। एक क्षेत्रीय कांग्रेस संगठन बनाने की भी मांग उठी।
जिले
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के समय यहाँ सिर्फ 16 जिले थे पर बाद में 2 नए जिलो की घोषणा की गयी जो कि नारायणपुर व बीजापुर थे। पर इसके बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने 15 अगस्त 2011 को 9 और नए जिलो कि और घोषणा कि जो 1 जनवरी 2012 से अस्तित्व में आ गये। 15 अगस्त 2019 को छत्तीसगढ़ की नई सरकार के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बिलासपुर जिले से काट कर 1 नए जिले के निर्माण की घोषणा की। इस तरह अब छत्तीसगढ़ में कुल 28 जिले हो गए हैं।
कवर्धा जिला • *कांकेर जिला (उत्तर बस्तर) • कोरबा जिला • कोरिया जिला • जशपुर जिला • जांजगीर-चम्पा जिला • दन्तेवाड़ा जिला (दक्षिण बस्तर) • दुर्ग जिला • धमतरी जिला • बिलासपुर जिला • बस्तर जिला • महासमुन्द जिला • राजनांदगांव जिला • रायगढ जिला • रायपुर जिला • सरगुजा जिला • नारायणपुर जिला • बीजापुर • बेमेतरा • बालोद जिला • बलौदा बाज़ार • बलरामपुर • गरियाबंद • सूरजपुर • कोंडागांव जिला • मुंगेली जिला • सुकमा जिला • गौरेला-पेंड्रा-मारवाही जिला
कला एवं संस्कृति
आदिवासी कला काफी पुरानी है। प्रदेश की आधिकारिक भाषा हिन्दी है और लगभग संपूर्ण जनसंख्या उसका प्रयोग करती है। प्रदेश की आदिवासी जनसंख्या हिन्दी की एक उपभाषा छत्तीसगढ़ी बोलती है।
महुआ
सल्फी से तैयार प्रसिद्द बस्तर बीयर
छत्तीसगढ़ में तेंदू पत्ता एकत्रण
साहित्य
मुख्य लेख: छत्तीसगढ़ी साहित्य और छत्तीसगढ़ के प्रमुख साहित्यकार
छत्तीसगढ़ साहित्यिक परम्परा के परिप्रेक्ष्य में अति समृद्ध प्रदेश है। इस जनपद का लेखन हिन्दी साहित्य के सुनहरे पृष्ठों को पुरातन समय से सजाता-संवारता रहा है।[6] छत्तीसगढ़ी और अवधी दोनों का जन्म अर्धमागधी के गर्भ से आज से लगभग 1080 वर्ष पूर्व नवीं-दसवीं शताब्दी में हुआ था।”[7] भाषा साहित्य पर और साहित्य भाषा पर अवलंबित होते है। इसीलिये भाषा और साहित्य साथ-साथ पनपते है। परन्तु हम देखते है कि छत्तीसगढ़ी लिखित साहित्य के विकास अतीत में स्पष्ट रूप में नहीं हुई है। अनेक लेखकों का मत है कि इसका कारण यह है कि अतीत में यहाँ के लेखकों ने संस्कृत भाषा को लेखन का माध्यम बनाया और छत्तीसगढ़ी के प्रति ज़रा उदासीन रहे। इसीलिए छत्तीसगढ़ी भाषा में जो साहित्य रचा गया, वह करीब एक हज़ार साल से हुआ है।
अनेक साहित्यको ने इस एक हजार वर्ष को इस प्रकार विभाजित किया है :
छत्तीसगढ़ी गाथा युग – सन् 1000 से 1500 ई. तक
छत्तीसगढ़ी भक्ति युग – मध्य काल, सन् 1500 से 1900 ई. तक
छत्तीसगढ़ी आधुनिक युग – सन् 1900 से आज तक
यह विभाजन किसी प्रवृत्ति की सापेक्षिक अधिकता को देखकर किया गया है। एक और उल्लेखनीय बत यह है कि दूसरे आर्यभाषाओं के जैसे छत्तीसगढ़ी में भी मध्ययुग तक सिर्फ पद्यात्मक रचनाएँ हुई है।
लोकगीत और लोकनृत्य
मुख्य लेख: छत्तीसगढ़ के लोकगीत और लोकनृत्य
छत्तीसगढ़ की संस्कृति में गीत एवं नृत्य का बहुत महत्व है। यहाँ के लोकगीतों में विविधता है। गीत आकार में अमूमन छोटे और गेय होते है एवं गीतों का प्राणतत्व है — भाव प्रवणता। छत्तीसगढ़ के प्रमुख और लोकप्रिय गीतों में से कुछ हैं: भोजली, पंडवानी, जस गीत, भरथरी लोकगाथा, बाँस गीत, गऊरा गऊरी गीत, सुआ गीत, देवार गीत, करमा, ददरिया, डण्डा, फाग, चनौनी, राउत गीत और पंथी गीत। इनमें से सुआ, करमा, डण्डा व पंथी गीत नाच के साथ गाये जाते हैं।
खेल
छत्तीसगढ़ी बाल खेलों में अटकन-बटकन लोकप्रिय सामूहिक खेल है। इस खेल में बच्चे आंगन परछी में बैठकर, गोलाकार घेरा बनाते है। घेरा बनाने के बाद जमीन में हाथों के पंजे रख देते है। एक लड़का अगुवा के रूप में अपने दाहिने हाथ की तर्जनी उन उल्टे पंजों पर बारी-बारी से छुआता है। गीत की अंतिम अंगुली जिसकी हथेली पर समाप्त होती है वह अपनी हथेली सीधी कर लेता है। इस क्रम में जब सबकी हथेली सीधे हो जाते है, तो अंतिम बच्चा गीत को आगे बढ़ाता है। इस गीत के बाद एक दूसरे के कान पकड़कर गीत गाते है।
फुगड़ी
बालिकाओं द्वारा खेला जाने वाला फुगड़ी लोकप्रिय खेल है। चार, छः लड़कियां इकट्ठा होकर, ऊंखरु बैठकर बारी-बारी से लोच के साथ पैर को पंजों के द्वारा आगे-पीछे चलाती है। थककर या सांस भरने से जिस खिलाड़ी के पांव चलने रुक जाते हैं वह हट जाती है।
लंगड़ी
यह वृद्धि चातुर्थ और चालाकी का खेल है। यह छू छुओवल की भांति खेला जाता है। इसमें खिलाड़ी एड़ी मोड़कर बैठ जाते है और हथेली घुटनों पर रख लेते है। जो बच्चा हाथ रखने में पीछे होता है बीच में उठकर कहता है।
खुडुवा (कबड्डी)
खुड़वा पाली दर पाली कबड्डी की भांति खेला जाने वाला खेल है। दल बनाने के इसके नियम कबड्डी से भिन्न है। दो खिलाड़ी अगुवा बन जाते है। शेष खिलाड़ी जोड़ी में गुप्त नाम धर कर अगुवा खिलाड़ियों के पास जाते है – चटक जा कहने पर वे अपना गुप्त नाम बताते है। नाम चयन के आधार पर दल बन जाता है। इसमें निर्णायक की भूमिका नहीं होती, सामूहिक निर्णय लिया जाता है।
डांडी पौहा
डांडी पौहा गोल घेरे में खेला जाने वाला स्पर्द्धात्मक खेल है। गली में या मैदान में लकड़ी से गोल घेरा बना दिया जाता है। खिलाड़ी दल गोल घेरे के भीतर रहते है। एक खिलाड़ी गोले से बाहर रहता है। खिलाड़ियों के बीच लय बद्ध गीत होता है। गीत की समाप्ति पर बाहर की खिलाड़ी भीतर के खिलाड़ी किसी लकड़े के नाम लेकर पुकारता है। नाम बोलते ही शेष गोल घेरे से बाहर आ जाते है और संकेत के साथ बाहर और भीतर के खिलाड़ी एक दूसरे को अपनी ओर करने के लिए बल लगाते है, जो खींचने में सफल होता वह जीतता है। अंतिम क्रम तक यह स्पर्द्धा चलती है।
जातियां
मुख्य लेख: छत्तीसगढ़ की जातियाँ
छत्तीसगढ़ मॆं कई जातियां और जनजातियां हैं। जनगणना 2011 के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य की कुल जनसंख्या में से 30.62 प्रतिशत (78.22 लाख) जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है। अघरीया, गोंड, कंवर, बिंझवार ,उरांव, हल्बा, भतरा, सवरा आदि प्रमुख जनजातियॉ है। अबूझमाड़िया, कमार, बैगा, पहाड़ी कोरवा तथा बिरहोर राज्य के विशेष पिछड़ी जनजातियाँ हैं। इनके अतिरिक्त अन्य जनजाति समूह भी है, जिनकी जनसंख्या अपेक्षाकृत कम है।
पर्यटन स्थल
राजिम
महामाया मंदिर रतनपुर ( बिलासपुर )
खूंटाघाट बांध (बिलासपुर)
मरी माई मंदिर (भनवारटंक )
नवागढ़
सेतगंगा
चित्रकोट जलप्रपात
तीरथगढ़ जलप्रपात
इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान
गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान
कैलाश गुफा
गंगरेल बांध
सिरपुर
मल्हार
भोरमदेव मंदिर
मैनपाट
बमलेश्वरी मंदिर
अमरकंटक
सर्वमंगला मंदिर (कोरबा)
जल विहार बुका – हसदेव नदी के चारो तरफ हरे भरे पहाड़ियों से घिरा जलमग्न सुंदर प्राकृतिक सौंदय से परिपूर्ण मिनीमाता बांगो बांध का भराओ वाला जगह है जो कोरबा जिला के मड़ई गांव से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां नाविक रहते है जो जल विहार कराते है।
केंदई जल प्रपात – केंदई जलप्रपात कोरबा जिला मुख्यालय से 85 किलोमीटर की दूरी पर अम्बिकापुर रोड पर स्थित है इस पर सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। जलप्रपात के नीचे जाने पर इंद्रधनुष की सुंदर चित्र बनती है जो मनमोहक है देखा जा सकता है। तथा चारो ओर हरे भरे पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
गोल्डन आइलैंड – गोल्डन आइलैंड केंदई ग्राम से सात किलोमीटर मीटर दक्षिण में है जहां तक सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। जो हसदेव नदी पर एक लैंड बना हुआ है जहां नाविक भी रहते है जो कभी भी जल विहार करा सकते है। जो बहुत ही आनंदमय जगह है। तथा पिकनिक स्पॉट भी है।