वैज्ञानिकों ने दूध से खोजकर एक ऐसा यौगिक एलपी-2 विकसित किया है, जिससे हादसों में टूट चुकी हडिड्यों को फिर से जोडा जा सकेगा। शोध पूरा हो चुका है और पेटेंट फाइल किया जा रहा है। इसके बाद इस यौगिक को दवा के रूप में लाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
देश में हर साल साढ़े चार लाख सड़क हादसे होते हैं, जिनमें से से कम से कम 20 फीसदी मामलों में हड्डियां टूट जाती हैं। जब हड्डियों के दो या अधिक टुकड़े होते हैं तो शल्य चिकित्सा के जरिये उनका उपचार मुश्किल होता है। अभी और कोई दवा उपलब्ध नहीं है।
वैज्ञानिक एवं औद्यौगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीडीआरआई) के वैज्ञानिकों ने दूध में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले प्रोटीन लेक्टाफेरिन के अमीनो एसिड का गहन अध्ययन किया। क्योंकि दूध स्तनधारियों में हड्डियों के विकास में अहम भूमिका निभाता है।
एलपी-2 नाम दिया
वैज्ञानिकों का उद्देश्य उस पेप्टाइड की खोज करना था जिसमें हड्डी बनाने की क्षमता होती है। मानव लेक्टोफेरिन 692 एमीनो एसिड युक्त प्रोटीन है। अमीनो एसिड ही प्रोटीन का निर्माण करते हैं। वैज्ञानिकों ने नैनो-ग्लोबुलर असेंबली के जरिये पेप्टाइड अनुक्रम 18 एमीनो एसिड की पहचान की जिसमें हड्डियों को पुनर्जिवित करने की क्षमता है। इसे एलपी-2 नाम दिया गया। वैज्ञानिकों के अनुसार एलपी-2 को इंजेक्ट करने पर यह तेजी से हड्डियों के टूटने के स्थान पर पहुंच जाता है तथा हड्डी का निर्माण शुरू कर देता है, जिससे हड्डी जुड़ जाती है।
टेरीपैराटाइड हार्मोन से 300 गुना शक्तिशाली
शोध के अनुसार अभी तक मानव पैराथायराइड हार्मोन टेरीपैराटाइड का इस्तेमाल ऑस्टियोपोरोसिस बीमारी के कारण हड्डियों के क्षतिग्रस्त होने की स्थिति मे उपचार के लिए किया जाता है। लेकिन एलपी-2 इससे 300 गुना शक्तिशाली है। इसके कोई साइड इफेक्ट भी नहीं हैं। एलपी-2 असल में टेरीपैराटाइड से अलग तंत्र के माध्यम से कार्य करता है।
लैब में बनेगा सिंथेटिक एलपी-2
एलपी 2 में कोई विषाक्तता नहीं है। वैज्ञानिक इसे एक नई पेप्टाइड दवा के रूप में विकसित कर रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार दवा के रूप में सिंथेटिक एलपी-2 का निर्माण लैब में किया जा सकेगा।
शोध में ये रहे शामिल
शोध में सीडीआरआई के वैज्ञानिकों में नैवेद्य चट्टोपाध्याय, सुभाशीष पाल, मोहम्मद सईद, अमित कुमार, देवेश पी वर्मा, कोनिका पोरवाल, शिवानी शर्मा, चिराग कुलकर्णी, अमिताभ बंदोपाध्याय, माधव एन मुगले, कल्याण मित्रा एवं जिमुत के. घोष शामिल हैं। शोध प्रमुख साइंस जर्नल एसीएस अप्लाइड मैटीरियल एंड इंटरफेसेज के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है।