जंगलों की आग से हिमालयी दुर्लभ वन्य जीवों की मुसीबत बढ़ गई हैं। पिथौरागढ़ में घाटी के जंगलों में शीतकाल प्रवास पर आए जीव-जंतु आग के कारण उच्च हिमालयी क्षेत्रों की तरफ समय से पहले लौटने लगे हैं। घाटी में जल रहे जंगलों से वन्य जीवों के लिए सुरक्षित स्थान पर पहुंचना भी चुनौती बना है।
उच्च हिमालय के वासी हिमालयन थार, ब्लू शीप, कस्तूरी मृग, मोनाल समेत कई प्रजाति के जीवन-जंतु और पक्षी नवंबर में घाटी के जंगलों में प्रवास पर आते हैं। 5-6 महीने प्रवास के बाद ये अप्रैल अंतिम सप्ताह से मई-जून तक अपने मूल ठिकानों पर लौटते हैं। इस बार जंगल की आग से फैली तपिश, धुंए और धुंध ने इन्हें समय से पहले लौटने पर मजबूर किया है। स्थानीय लोग बताते हैं कि निचले इलाकों में दिखने वाले जानवर अभी से पलायन करने लगे हैं। विशेषज्ञों का भी कहना है आने वाले समय में भी जंगलों में आग का ये सिलसिला बना रहा तो दुर्लभ जंतुओं के प्रवास का समय गड़बड़ा सकता है।
शीतकाल में 4 हजार फीट तक उतरते हैं ये जीव
हिमालयी क्षेत्र के जंगलों में मिलने वाले दुर्लभ वन्यजीवों का आवास क्षेत्र 13 से साढ़े 13 हजार फीट ऊंचाई के जंगल हैं। शीतकाल में ये कड़ाके की ठंड से बचने के लिए चार हजार फीट तक नीचे उतर आते हैं। हिमालयन थार, कस्तूरा मृग, ब्लू शीप को बड़ी संख्या में दारमा वैली के साथ खलिया, स्यूनी, मपांग क्षेत्र में करीब 9 से 10 हजार फीट तक की ऊंचाई वाले जंगलों में इन्होंने लंबे समय तक प्रवास किया।
दारमा वैली के साथ क्षेत्र के कई जंगलों में आग से प्रवास से वापस लौट रहे वन्य जीवों को गंभीर नुकसान पहुंचा है। कई स्थानों पर अवैध शिकार के लिए सक्रिय शिकारियों ने भी आग लगाई है। यही वजह है कि कई जानवर शीतकाल का प्रवास पूरा किए बगैर भी मूल स्थान को लौटने लगे हैं। – जयेन्द्र फिरमाल, सीबीटीएस, दारमा वैली, पिथौरागढ़
हिमालयी क्षेत्र के जंगलों में आग का नुकसान वहां पाये जाने वाले जीवों के साथ पूरी जैव विविधता को हो रहा है। माइग्रेशन से लौट रहे दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीवों को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है।