संयुक्त राष्ट्र के एक एक्सपर्ट पैनल ने भारत सरकार अगस्टा वेस्टलैंड डील मामले में बिचौलिये क्रिश्चियन मिशेल को तत्काल रिहा करने को कहा है। पैनल का कहना है कि मिशेल को हिरासत में रखना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार नियमों का उल्लंघन है और ऐसा करना गलत है। संयु्क्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के तहत काम करने वाले वर्किंग ग्रुप ऑन आर्बिट्रेरी डिटेंशन ने शुक्रवार देर रात अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें यह बात कही है। संयुक्त अरब अमीरात से 2018 में प्रत्यर्पण के बाद से ही ब्रिटिश नागरिक क्रिश्चियन मिशेल हिरासत में है। वर्किंग ग्रुप ने अपनी रिपोर्ट में भारत के अलावा यूएई सरकार पर भी सवाल उठाते हुए कहा है कि उसने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन किया है।
हालांकि वर्किंग ग्रुप ने भले ही अब अपनी औपचारिक रिपोर्ट सौंपी है, लेकिन उसके सुझावों को भारत सरकार ने पिछले महीने ही यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उसने बहुत सीमित जानकारी के आधार पर यह राय दी है। भारत सरकार का कहना था कि हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के बारे में पूरी जानकारी न होने और पक्षपात पूर्ण आरोपों के तहत यह रिपोर्ट तैयार की गई है। अब वर्किंग ग्रुप की औपचारिक रिपोर्ट पर भारत की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। वर्किंग ग्रुप ऑन आर्बिट्रेरी डिटेंशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस मामले में यह बेहतर होगा कि भारत सरकार तत्काल मिशेल को रिहा कर दे।
यही नहीं ग्रुप का कहना है कि मौजूदा कोविड-19 महामारी के संकट और हिरासत में उसे जिस स्थान पर रखा गया है, वहां के खतरे को देखते हुए उसे तत्काल रिहा करना सही होगा। यही नहीं वर्किंग ग्रुप ने भारत सरकार और यूएई को सलाह दी है कि वे मिशेल के मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर एक स्वतंत्र जांच कराएं और फिर उन लोगों के खिलाफ जरूरी एक्शन लें, जो इस उल्लंघन के लिए जिम्मेदार हैं।
वर्किंग ग्रुप का कहना है कि मिशेल को हिरासत में रखा जाना यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स का उल्लंघन है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों का भी उल्लंघन है। बता दें कि क्रिश्चियम मिशेल को फिलहाल दिल्ली की तिहाड़ जेल में रख गया है। 2010 में हुई अगस्टा वेस्टलैंड चौपर डील में बिचौलिये की भूमिका में रहे मिशेल का 2018 में भारत सरकार ने दुबई से प्रत्यर्पण किया था।