बॉम्बे हाईकोर्ट में बुधवार को एक पीआईएल पर सुनवाई हो रही थी, जिसमें वकीलों और न्यायाधीशों के लिए टीकाकरण में प्राथमिकता देने की मांग की गई थी। इस मामले पर सुनवाई करते हुए बेंच ने मांग को स्वार्थी करार दिया साथ ही कहा कि कुछ फैसले को कार्यपालिका पर छोड़ देने देना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की पीठ ने याचिका पर सुनवाई की और कहा कि कई अन्य जैसे स्वच्छता कार्यकर्ता और निजी संगठनों के कर्मचारी भी महामारी के बीच काम करते रहे। पीठ ने कहा, “निजी संगठनों, डब्बावालों के कर्मचारियों के लिए जनहित याचिका क्यों नहीं दायर की गई? इस तरह हर कोई फ्रंटलाइन वर्कर है।”
पीठ ने कहा, “कुछ कार्यपालिका के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। हमें बताएं कि नीति में क्या गलत है? एक नीतिगत निर्णय में अदालत द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है जब तक कि मनमानी न हो।” मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने कहा, “क्या आपने फिल्म ‘टाइटैनिक’ देखी है? क्या आप जहाज के कप्तान को याद करते हैं? उसे दूसरों के निकाले जाने तक इंतजार करना होगा।”
भारत में टीकाकरण अभियान 16 जनवरी को शुरू हुआ, जिसमें स्वास्थ्य कर्मियों और अन्य फ्रंटलाइन श्रमिकों को प्राथमिकताएं दी गईं। इनमें नगरपालिका के कार्यकर्ता, पुलिस, रक्षा कर्मी आदि शामिल थे। दूसरा चरण एक मार्च से शुरू हुआ। इसमें वरिष्ठ नागरिकों और 45 और 59 आयु वर्ग के लोग अगर किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं, उन्हें प्राथमिकात दी गई। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की बात करें तो एक को छोड़कर सभी 60 वर्ष से अधिक आयु के हैं। इन्हें दूसरे चरण में टीके लगाए जाएंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय में भी एक जनहित याचिका भी दायर की गई, जिसमें न्यायपालिका से जुड़े सभी लोगों को फ्रंटलाइन कार्यकर्ता घोषित करने की मांग की गई है। उस जनहित याचिका के संबंध में एक नोटिस का जवाब देते हुए, केंद्र ने बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि प्राथमिकता पर वैक्सीन किसे मिलेगा, यह निर्णय पेशे के आधार पर नहीं, बल्कि बीमारी के लिए उनकी प्रतिरोधक क्षमता के आधार पर लिया गया था।