दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने किसान आंदोलन से जुड़ी ‘टूलकिट’ (Toolkit Case) सोशल मीडिया पर शेयर करने के मामले में आरोपी इंजीनियर शांतनु मुलुक (Shantanu Muluk) और वकील निकिता जैकब (Nikita Jacob) को 15 मार्च तक गिरफ्तारी से अंतरिम राहत प्रदान की है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने दोनों आरोपियों मुंबई की वकील निकिता जैकब और पुणे के इंजीनियर शांतनु मुलुक को राहत प्रदान की। इससे पहले दोनों आरोपियों के वकीलों ने कहा कि मामले में आगे दलीलें रखने के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा दाखिल जवाब पर गौर करने के लिए उन्हें समय चाहिए। कोर्ट ने निवेदन को सुना और पुलिस को दोनों आरोपियों के खिलाफ 15 मार्च तक किसी तरह की दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया। उसी दिन अदालत मामले में आगे सुनवाई करेगी।
जानकारी के अनुसार, कोर्ट ने बीते 2 मार्च को निकिता जैकब की अग्रिम जमानत याचिका पर जवाब देने के लिए दिल्ली पुलिस को एक सप्ताह का समय दिया था। दिल्ली पुलिस ने वकील निकिता जैकब के खिलाफ राजद्रोह और अन्य आरोपों के तहत मामला दर्ज किया है। जैकब ने अग्रिम जमानत के लिए दिल्ली की अदालत का रुख किया था।
टूलकिट’ मामले में निकिता जैकब के अलावा बेंगलुरु की पर्यावरण एक्टिविस्ट दिशा रवि भी आरोपी हैं। जैकब को तीन सप्ताह के लिए 17 फरवरी को बॉम्बे हाईकोर्ट से ट्रांजिट अग्रिम जमानत मिली थी ताकि आरोपी दिल्ली में संबंधित अदालत का रुख कर सकें, जहां यह मामला दायर है।
पुलिस ने आरोप लगाया था कि कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के नाम पर भारत में हिंसा और अशांति फैलाने की साजिश के तहत यह ‘टूलकिट’ तैयार की गई थी। इससे पहले दिल्ली में सेशन कोर्ट ने 25 फरवरी को अन्य आरोपी शांतनु मुलुक को 9 मार्च तक के लिए गिरफ्तारी से राहत दी थी।
कोर्ट ने 25 फरवरी को मुलुक को नौ मार्च तक गिरफ्तारी से राहत प्रदान की थी। महाराष्ट्र की औरंगाबाद पीठ ने 16 फरवरी को मुलुक को 10 दिनों के लिए ट्रांजिट अग्रिम जमानत दी थी। इसके बाद उन्होंने 23 फरवरी को दिल्ली की अदालत का रुख किया था। शांतनु मुलुक, दिशा रवि और निकिता जैकब पर राजद्रोह और अन्य आरोपों में मामला दर्ज किया गया है।
वहीं, कोर्ट ने 23 फरवरी को बेंगलुरु की रहने वाली एक्टिविस्ट दिशा रवि को यह कहकर जमानत दे दी थी कि पुलिस द्वारा पेश किए गए सबूत ‘अधूरे’ हैं। कोर्ट ने कहा था कि पेश किए गए सबूत 22 वर्षीय युवती को हिरासत में रखने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, जिसकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है। एडिशनल सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने कहा था कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में नागरिक सरकार की अंतरात्मा के संरक्षक होते हैं। उन्हें केवल इसलिए जेल नहीं भेजा जा सकता, क्योंकि वे सरकार की नीतियों से असहमत हैं।