लेखा जोखा
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जब खुशी मिली तो झुक गये कमान से
दुःख मिला तो तीर से सपाट हो गये
बोझ जब मिला तो हम चले लहर लहर
साथ जब मिला नदी के पाट हो गये।।
जिन्दगी को खेल सा जिया प्रत्येक क्षण
हार जीत का गणित संवारते रहे,
बैर भाव में सदा विजय मिली हमें
प्रेम भाव में सदा ही हारते रहे।।
जो मिला उसी में, सुख लिया कुबेर सा
जो नहीं मिला,उसे बिसारते रहे,
फूल से सुगंध की जगह चुभन मिली
शूल को हृदय लगा दुलारते रहे।।
स्वार्थ के प्रबल प्रहार, उम्र भर सहे
देह में न जाने कैसा भर गया ज़हर,
दर्द की ही प्यास बढ़ रही है रात दिन
सामने है ज़िन्दगी का आखिरी पहर।।
सांस का बितान आज तो तना हुआ
क्या पता कहां पे तार टूटने लगे
राम नाम ही है सत्य, जान लूं अभी
क्या पता कहां पे सांस छूटने लगे।।
रूप और रंग , संग जायेगा नहीं
पाप और पुण्य का हिसाब खोज लूं।
आत्मा के साथ सहगान के लिये
जिन्दगी के गीत की किताब ख़ोज लूं।।
अशोक तिवारी
अहमदाबाद
(M) 9825305997