उत्तराखंड के चमोली जिले के तपोवन में राहत व बचाव का कार्य जारी है। रेस्क्यू टीम को मैणाणा से शुक्रवार दोपहर एक और शव मिला है। अब आपदा में कुल मृतकों की संख्या 37 पहुंच गई है। बरामद किए गए 36 शवों में से 10 की पहचान कर ली गई है। आपदा के छह दिन बाद भी 167 लोग लापता हैं। आपदा ग्रस्त क्षेत्र में भारतीय वायु सेना का चिनूक की मदद से आपदा क्षेत्र में भारी सामान लाने मे मददगार साबित हो रहा है। रेस्क्यू टीम और साजो सामान के साथ आज चिनूक चौथी बार जोशीमठ हेलिपेड पर लैंड हुआ। चिनुक हेलीकॉप्टर से आपदा ग्रस्त क्षेत्र में ड्रिल, उपकरण और मशीनें लाई गई हैं।
डीजीपी अशोक कुमार ने बताया कि तपोवन टनल के 12 मीटर नीचे छोटी टनल है जहां संभावना थी कि कुछ लोग फंसे हुए हैं। लेकिन हम कल 6 मीटर तक ही ड्रिल कर पाए थे लेकिन आज हम वहां दूसरी मशीन लगाकर फिर से ड्रिल करने का प्रयास करेंगे कहा कि आपदा में राहत व बचाव कार्य युद्धस्तर पर जारी है। कहा कि रेस्क्यू में उत्तराखंड पुलिस के बहादुर जवानों सहित एनडीआरएफ,सेना, एसडीआरएफ,आईटीबीपी, बीआरओ आदि के जवान सुबह से ही राहत कार्य में जुटे हुए हैं। एनडीआरएफ के कमांडेंट ने बताया, “लगातार हमारी टीम यहां काम कर रही है। नई मशीनों के द्वारा भी यहां काम शुरू हो चुका है। नदी के किनारे भी हम अपनी एक टीम भेज रहे हैं ताकि वहां रास्ते में जो शव फंसे हो उसका पता लगा सकें।
बैराज की तरफ से जाने की कोशिश
दोपहर बाद बचाव दल ने बैराज की तरफ से रास्ता तलाशने का भी प्रयास किया। यहां मुख्य सुरंग करीब 20 मीटर नीचे मलबे में दबी हुई है। हालांकि अभी इसमें सफलता नहीं मिल पाई है। पाचंवें दिन भी 180 मीटर लंबी सुरंग का करीब 30 मीटर हिस्सा अभी पूरी तरह बंद है। जेसीबी जितना मलबा साफ कर रही है, पीछे से उतना ही गाद फिर भर जा रहा है।
बचाव दल ने बड़ी उम्मीद से ड्रिल के जरिए, सुरंग की दीवार तोड़ने की कोशिश की, लेकिन ड्रिल मशीन खराब होने के कारण यह प्रयोग भी सिरे नहीं चढ़ पाया। पहले चार दिन जेसीबी से सुरंग साफ करने के प्रयास में असफलता मिलने के बाद बचाव दल ने बुधवार-गुरुवार की मध्यरात्रि ड्रिल मशीन से सुरंग में छेद कर फ्लश चैनल में जाने का प्रयास किया। इस फ्लश चैनल में ही 30 लोगों के फंसे होने की संभावना है।
दीवार की एक साइड पर करीब 13 मीटर लंबा छेद किया जाना है। शुरुआती चार घंटे में साढ़े पांच मीटर छेद करने में सफलता हासिल हुई। लेकिन इसके बाद ड्रिल मशीन खराब होने से इसमें बाधा आ गई। साथ ही ड्रिल वाली जगह पर पानी भी निकलने से यह प्रयोग भी रोक दिया गया। इस बीच जेसीबी से मलबा सफाई का अभियान जारी रहा। हालांकि यहां भी मलबा के साथ गाद ज्यादा आने से बहुत सफलता नहीं मिल पाई।