राष्ट्रीय जनता दल ने बिहार मंत्रिमंडल विस्तार में कुशवाहा समाज की उपेक्षा का आरोप लगाया है। राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रोफेसर सुबोध कुमार मेहता ने कहा कि बिहार में सरकार के गठन के लगभग तीन महीने बाद और बजट सत्र के प्रारंभ होने के पहले काफी नूराकुश्ती के बाद कैबिनेट का विस्तार हुआ है, लेकिन वह भी संपूर्ण नहीं है।
उन्होंने कहा कि सीएसडीएस द्वारा एक सर्वे के बाद जारी किए गए आंकड़ों के हिसाब से कुशवाहा समाज के 52 प्रतिशत मतदाताओं ने एनडीए को वोट किया था। ऐसे में कुशवाहा समाज से मात्र दो लोगों को कैबिनेट में जगह दिया जाना चिंतनीय है। लालू जी के समय में कुल छह मंत्री कुशवाहा समाज से हुआ करते थे। यही कारण है कि कुशवाहा समाज ठगा हुआ महसूस कर रहा है और इस समाज के लोग दिन प्रतिदिन राजद परिवार का दामन थाम रहे हैं। कुशवाहा समाज ने अब पूरी तरह से मन बना लिया है कि बिहार को तेजस्वी जी के नेतृत्व में एक युवा नेतृत्व देकर विकास की ऊंचाइयों तक ले जाना है।
मंत्री बनाने में जदयू ने अपने आधार वोट का रखा ख्याल
बिहार की सत्ता में पिछले 15 साल से प्रमुख भूमिका निभाने वाले जदयू ने अपने विधायकों की घटी संख्या के अनुपात में राज्य मंत्रिमंडल में अपनी कम हुई भागीदारी के बावजूद अपनी नीतियों के साथ-साथ आधार वोटबैंक को भी साधने की कोशिश की है। जदयू का नारा सर्वसमाज को साथ लेकर चलने का है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी न्याय के साथ विकास और सभी क्षेत्रों, वर्गों के विकास को अपना लक्ष्य बताते हैं। इसकी छवि जदयू कोटे से मंत्रिमंडल में शामिल किये गये मंत्रियों की पृष्ठभूमि से भी साफ होती है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को छोड़कर जदयू कोटे से अबतक 12 मंत्री बने हैं। इनमें तीन पिछड़ा, दो अतिपिछड़ा, दो दलित, एक अल्पसंख्यक जबकि चार मंत्री सवर्ण समाज से हैं। जदयू को सदा से ही राज्य के पिछड़ा, अतिपिछड़ा वोटरों पर अधिक भरोसा रहा है। पार्टी नेता इसे चुप्पा वोटर कहते रहे हैं। इसके मद्देनजर जदयू ने अपने आधार वोटबैंक से जुड़े पांच नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह देकर इस वर्ग को एक अच्छा संदेश देने की कोशिश की है।