दिल्ली में गणंतत्र दिवस पर हुई हिंसा के बाद अब किसान नेताओं में भी फूट पड़ती दिख रही है। भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत पर किसान आंदोलन को बेचने का गंभीर आरोप लगाया है।
चढूनी ने आज एक वीडियो जारी कर अपने बयान में आरोप लगाया कि टिकैत भारतीय जनता पार्टी (BJP) की गोद में बैठे हैं। उन्होंने किसान आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए किसानों का धन्यवाद किया। उन्होंने दावा किया कि कुछ किसान संगठन किसान आंदोलन को सरकार के पास बेचना चाह रहे हैं और कह रहे हैं कि सरकार को जो बात करनी है वह उनसे करे।
उन्होंने कहा कि जो संगठन सरकार से बात करने के लिए जा रहे हैं मैं उनसे प्रर्थना करता हूं कि इन किसानों पर रहम खाएं और किसानों का न बेचें। अनेक किसान संगठन अपनी निजी फायदे के लिए अपने सगठंन को बेच रहे हैं। अब टिकैत भी किसान आंदोलन को अपना आंदोलन बता रहे हैं। भाकियू का हरियाणा प्रदेश प्रधान भी भाजपा की गोद में बैठा है। चढूनी ने यह भी दावा किया कि टिकैत ने उनके खिलाफ दो मामले दर्ज कराए हैं।
70वें दिन भी किसान आंदोलन जारी
गौरतलब है कि नए कृषि कानूनों पर जारी गतिरोध के चलते राजधानी दिल्ली से लगी गाजीपुर, टीकरी और सिंघु बॉर्डरों पर किसानों का आंदोलन आज 70वें दिन भी जारी है। कानूनों को रद्द कराने पर अड़े किसान इस मुद्दे पर सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर चुके हैं। इस बीच, राकेश टिकैत को मिल रहे भारी समर्थन के बाद गाजीपुर बॉर्डर पर अब आंदोलन का केंद्र बिंदु बन गया है। वहीं, सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर भी बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी मौजूद हैं। 26 जनवरी की घटना के बाद किसी तरह की अप्रिय स्थिति से बचने के लिए पुलिस ने सभी धरनास्थलों की पूरी तरह घेराबंदी कर दी है। धरनास्थलों के आस-पास कई लेयर की बैरिकेडिंग करके ऊपर कंटीली तारें बिछा दी गई हैं। सड़क पर टायर किलर्स लगाए गए हैं। इसके अलावा भारी तादाद में पुलिस और अर्धसैनिक बल तैनात कर दिए गए हैं।
बता दें कि किसान हाल ही बनाए गए तीन नए कृषि कानूनों – द प्रोड्यूसर्स ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) एक्ट, 2020, द फार्मर्स ( एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज एक्ट, 2020 और द एसेंशियल कमोडिटीज (एमेंडमेंट) एक्ट, 2020 का विरोध कर रहे हैं। केन्द्र सरकार तीनों नए कृषि कानूनों को कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश कर रही है, वहीं प्रदर्शन कर रहे किसानों ने आशंका जताई है कि नए कानूनों से एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) और मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और वे बड़े कॉरपोरेट पर निर्भर हो जाएंगे।