नगारिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध को लेकर पिछले साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा हिंदू विरोधी नहीं थी। हिंसा से जुड़ मुकदमों की सुनवाई कर रही अदालत ने यह टिप्पणी की है। अदालत ने कहा है कि इस हिंसा में सभी समुदाय के लोक प्रभावित हुए। अदालत ने हिंसा को लेकर मीडिया में प्रकाशित और प्रसारित हो रही खबरों पर संज्ञान लेते हुए यह टिप्पणी की है।
चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट दिनेश शर्मा ने कहा कि मीडिया में ऐसा दिखाया गया कि यह हिंसा पूरी दिल्ली में हिंदू विरोधी थी, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं था। उन्होंने दिल्ली हिंसा से जुड़े मामले में आरोपी बनाए गए जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि एक समाचार पत्र में खबर की शुरुआत की गई है कि ‘कट्टरपंथी इस्लामी और हिंदू विरोधी दिल्ली दंगों में आरोपी उमर खालिद…।’
अदालत ने कहा कि उक्त अखबार में पूरी दिल्ली के हिंसा को हिंदू विरोधी दंगों के रूप में दर्शाया गया। अदालत ने कहा कि हालांकि, वास्तव में ऐसा प्रतीत नहीं होता क्योंकि सभी समुदायों के लोगों इससे प्रभावित हुए और हिंसा के परिणामों को महसूस किया है। अदालत ने कहा कि मीडिया ने आरोपी उमर खालिद द्वारा पुलिस के सामने कबूलनामे के बारे में व्यापक रूप से खबरें की हैं, लेकिन किसी ने भी यह स्पष्ट नहीं किया कि यह इकबालियां बयान बतौर साक्ष्य स्वीकार नहीं होता है।
अदालत ने कहा है कि मीडिया को अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। अदालत ने कहा है कि मीडिया की यह जवाबदेही और जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने पाठकों और दर्शकों को यह बताएं कि इस तरह के बयान कोई भी बयान अभियोजन पक्ष द्वारा अदालत में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही अदालत ने आरोपी खालिद की अर्जी का निपटारा कर दिया।
अर्जी में खालिद ने आरोप लगाया था कि उसके खिलाफ हिंसा मामले में मीडिया ट्रायल किया जा रहा है। उसने यह भी आरोप लगाया कि उसके खिलाफ में अदालत में पेश पूरक आरोप पत्र की प्रति, उसे मुहैया कराने से पहले मीडिया में लीक कर दी गई। खालिद ने अदालत में यह भी कहा कि मीडिया में उसका इकबालिया बयान दिखाया गया, जबकि उसने पुलिस को कोई इकबालिया बयान नहीं दिया।
‘प्रतिष्ठा है मू्ल्यवान संपत्ति’
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि किसी भी व्यक्ति की प्रतिष्ठा उनकी बहुमूल्य संपत्ति है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसकी गरिमा बनाए रखने का उन्हें अधिकार है। अदालत ने कहा है कि कोर्ट ऐसे बयानों पर भरोसा करने के बजाए तथ्यों और साक्ष्यों की कसौटी पर मामले में अपना फैसला देती है। अदालत ने कहा है कि ऐसे में खबर लिखने वाले संवाददाता को कानून का ऐसा बुनियादी ज्ञान होना चाहिए। अदालत ने कहा है कि ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि पाठक व दर्शक अखबारों व चैनल में दिखाए गए तथ्यों की पुष्टी किए बिना उसे सही मान लेते हैं।