कोरोना महामारी के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के बावजूद पिछले साल उत्तर भारत के कुछ शहरों में वायु प्रदूषण बढ़ गया है। एक नए विश्लेषण में पाया गया है कि पिछले साल भारत-गंगा के मैदानी क्षेत्र और दिल्ली-एनसीआर के बाहर के छोटे शहरों में वायु प्रदूषण में इजाफा हुआ है।
भले ही पिछले साल गर्मियों और मॉनसून के महीनों में औसत पीएम 2.5 का स्तर 2019 की तुलना में काफी कम हो, लेकिन पंजाब और हरियाणा में सर्दियों के प्रदूषण स्तर में वृद्धि हुई, जिससे उनके पीएम 2.5 के स्तर में वार्षिक औसत वृद्धि हुई है।
दिल्ली सहित बड़े शहरों और कस्बों में महामारी के दौरान वार्षिक पीएम 2.5 के संकेंद्रण में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई। उदाहरण के लिए दिल्ली में 2019 की तुलना में 2020 में लगभग 13% सुधार दर्ज किया गया है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि देशव्यापी लॉकडाउन (25 मार्च से 31 मई तक) के बाद अर्थव्यवस्था को फिर से खोलने और दिसंबर तक चरणबद्ध रूप से फिर से खोलने के कारण भारत-गंगा के मैदानी इलाकों के कुछ हिस्सों में सर्दियों के मौसम में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है और प्रतिकूल है।
इन शहरों में बढ़ा प्रदूषण
कई बड़े शहरों में वार्षिक पीएम 2.5 के स्तर में कमी देखी गई है, जबकि छोटे शहरों और कस्बों में वृद्धि दर्ज की गई है। 2019 की तुलना में उत्तरी हरियाणा के फतेहाबाद का 35% वृद्धि के साथ सबसे खराब प्रदर्शन रहा। इसके बाद बठिंडा 14%, आगरा 9%, खन्ना 7%, मंडी गोबिंदगढ़ 6%, मुरादाबाद में 5.5% और कुरुक्षेत्र में 1% की वृद्धि दर्ज की गई।
सिरसा में पीएम 2.5 के स्तर में 44% की कमी दर्ज की गई, वाराणसी 31%; गया 27%, मुजफ्फरपुर 13%, दिल्ली में 13% और हिसार में 12% की कमी दर्ज की गई।
CSE ने इस विश्लेषण के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के केंद्रीय नियंत्रण कक्ष से वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए IGP क्षेत्र के 26 शहरों के रियल टाइम डेटा (15 मिनट औसत) का उपयोग किया है। विश्लेषण में कहा गया है कि फतेहाबाद में पिछले साल पीएम 2.5 के संकेंद्रण में सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई और सिरसा में सबसे ज्यादा सुधार दर्ज किया गया जो केवल 40 किलोमीटर दूर है।
सीएसई की शहरी लैब टीम में सस्टेनेबल सिटीज प्रोग्राम के प्रोग्राम मैनेजर अविरल सोमवंशी ने कहा, “इसलिए, इस बड़े बदलाव को मौसम में परिवर्तन के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है और स्थानीय कारकों से ऐसा हुआ है। उत्तर-पश्चिम में हिसार और जींद जैसे अन्य छोटे शहरों के साथ इन शहरों का वार्षिक औसत फसलों की पराली जलने से होने वाले प्रदूषण से काफी प्रभावित होता है। यह प्रभाव इतना कारगर है कि नवंबर से दिल्ली के मासिक PM2.5 के स्तर को बढ़ा सकता है, लेकिन दिल्ली के विपरीत, ये शहर सीधे धुएं के संपर्क में हैं।”