दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में पिछले साल सांप्रदायिक हिंसा के दौरान हुई हेड कॉन्स्टेबल रतनलाल की हत्या के मामले में आरोपी एक महिला की जमानत याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने दिल्ली के चांद बाग निवासी तबस्सुम की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि उसके मोबाइल फोन की सीडीआर से खुलासा हुआ है कि वह कई सह-आरोपियों के लगातार संपर्क में थी।
न्यायाधीश ने कहा कि आरोपी के खिलाफ आरोप गंभीर प्रकृति के हैं। उन्होंने कहा कि अपराध की गंभीरता के साथ मामले के समूचे तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए मैं इसे आवेदक को जमानत देने का सही मामला नहीं मानता और जमानत आवेदन खारिज किया जाता है।
न्यायाधीश ने उल्लेख किया कि यह पूरी तरह स्पष्ट है कि प्रदर्शनकारियों और आयोजकों ने भीड़ में शामिल लोगों को उकसाया तथा कुछ शरारती तत्वों ने घटनास्थल को घेर लिया और वे पत्थरों, छड़ों, धारदार हथियारों तथा अन्य तरह के हथियारों के साथ पूरी तरह लैस प्रतीत दिखे थे। उन्होंने कहा कि यहां तक कि एक बुर्कानशीं महिला भी पुलिस दल पर छड़ों जैसी चीजों से हमला करती स्पष्ट रूप से दिखी।
न्यायाधीश ने कहा कि रिकॉर्ड में यह भी आया है कि भीड़ में से कुछ लोगों ने 25 फुट चौड़ी सड़क के आसपास स्थित ऊंचाी इमारतों की छतों पर कब्जा कर लिया जिनके पास आग्नेयास्त्र और दंगे में इस्तेमाल की जाने वाली अन्य सामग्री थी।
उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि सबकुछ एक सोची समझी साजिश के तहत किया गया जिसका मकसद मुख्य वजीराबाद रोड को अवरुद्ध करना तथा पुलिस कर्मियों द्वारा रोके जाने पर उनपर हमला करने का था।
पुलिस ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि तबस्सुम ने प्रदर्शनकारियों के साथ मंच साझा किया और लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काया तिाा इसका परिणाम उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 24 फरवरी 2020 को दंगे भड़कने के रूप में निकला जिनमें कॉन्स्टेबल रतनलाल सहित 50 से अधिक लोग मारे गए।
अभियोजन के अनुसार घटना के दौरान पुलिस उपायुक्त (शहादरा) अमित शर्मा और सहायक पुलिस आयुक्त (गोकलपुरी) अनुज कुमार तथा अन्य 51 पुलिसकर्मियों को भी दंगाइयों ने घायल कर दिया था।