दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार से दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विधेयक 2019 या क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 के तत्काल कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की मांग पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।
दलील में कहा गया है कि अवैध पैथोलॉजिकल लैब राजधानी में किसी भी नियमन के अभाव में अनैतिक रूप से चल रही हैं, जिनसे आम नागरिकों की सुरक्षा को खतरा है।
जस्टिस डी.एन. पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की बेंच ने बुधवार को दिल्ली सरकार के वकील के पिता की मौत के कारण सुनवाई 29 जनवरी तक स्थगित कर दी। हालांकि, अदालत ने सरकार से याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।
याचिकाकर्ता एक्टिविस्ट बेजोन कुमार मिश्रा की ओर से वकील शशांक देव सुधी, बिजेन्द्र पी कुमार और दिनेश डकोरिया के माध्यम से याचिका दायर की गई थी।
दलील का दावा किया गया है कि अवैध और अनधिकृत पैथोलॉजिकल लैब बिना किसी प्रकार की जांच के संचालित की जा रही हैं और ये दिल्ली के आम लोगों के जीवन और सुरक्षा को खतरे में डालती हैं।
याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट ने 30 नवंबर, 2018 के अपने आदेश में जिम्मेदार लोगों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देशों और गाइडलाइंस के संदर्भ में उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद जवाबदेह लोगों ने उन अवैध और अनधिकृत लैब्स और डायग्नोस्टिक सेंटर्स पर नकेल कसने की दिशा में कोई गंभीर कदम नहीं उठाया और आम आदमी अब भी फर्जी और झूठी रिपोर्टों के शिकार हो रहे हैं, जिनमें कई मामलों में मौत सहित गंभीर स्वास्थ्य संबंधी घटनाएं शामिल हैं।
याचिका में पैथोलॉजिकल लैब्स और डायग्नोस्टिक सेंटर्स के बारे में एक रिपोर्ट का भी जिक्र किया है जहां एक डॉक्टर अपने सहयोगी के साथ नकली कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट देने का रैकेट चला रहा था और बाद में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था।
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार ने मानदंडों को पूरा नहीं करने वाले और योग्य पैथोलॉजिस्ट्स के बिना अवैध रूप से चल रही पैथोलॉजिकल लैब्स और डायग्नोस्टिक सेंटर्स के विनियमन की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया है।