धोखाधड़ी के एक पांच साल पुराने मामले में आरोपी की तरफ से शिकायतकर्ताओं से समझौता करने आग्रह किया गया। परन्तु अदालत ने आरोपी के इस अनुरोध को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि किसी भी प्रकार के अपराध के मामले में आरोपी की इच्छा से कानूनी प्रक्रिया नहीं चलेगी, बल्कि शिकायतकर्ता की मर्जी होगी तभी समझौते पर विचार होगा।
द्वारका स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डॉ. सौरभ कुलश्रेष्ठ की अदालत ने आरोपी की याचिका को नामंजूर कर दिया है। साथ ही अदालत ने इस मामले के तीन अलग-अलग शिकायतकर्ताओं को जांच अधिकारी के माध्यम से अदालत में पेश होने के लिए नोटिस जारी किया है। अदालत ने कहा है कि यदि तीनों शिकायतकर्ता आरोीप से समझौते की मंशा जाहिर करेंगे, तभी अदालत इस मामले को मध्यस्थता के लिए मध्यस्थता केन्द्र में स्थानान्तरित करेंगे। इसी मंशा को जानने के लिए तीनों शिकायतकर्ता को सोमवार के लिए पेश होने को कहा गया है। वहीं, इस मामले के जांच अधिकारी की तरफ से अदालत को बताया गया कि आरोपी पर एक ही प्रकृति के तीन मुकदमे वर्ष 2015 में दर्ज हुए थे। लेकिन आरोपी तभी से फरार चल रहा है। वह कानूनी प्रक्रिया से बचने का प्रयास कर रहा है। इतना ही नहीं उसके खिलाफ अदालत के आदेश पर सीआरपीसी की धारा 82 के तहत कार्रवाई की जा चुकी है। इसके तहत उसे भगौड़ा करार दिया जा चुका है। अब वह सीधे शिकायतकर्ताओं से समझौते का आग्रह कर रहा है जोकि न्यायसंगत नही है।
विदेश में नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी का आरोप
इस मामले में आरोपी पर इल्जाम है कि उसने जनवरी 2014 में शिकायतकर्ताओं से विदेश में नौकरी दिलाने के नाम पर मोटी रकम वसूल की। एक शिकायतकर्ता से पांच लाख रुपये की मांग की। जिसमें से एक लाख रुपये उससे टोकन मनी के तौर पर लिए गए। उस समय 45 दिन के भीतर विदेश में नामी कंपनी में नौकरी दिलाने का वादा शिकायतकर्ता से किया गया। लेकिन बाद में आरोपी फरार हो गए। यह प्राथमिकी अदालत के आदेश पर दर्ज की गई। हालांकि दो शिकायतकर्ता मुकदमा दर्ज होेने के बाद सामने आए।