दिल्ली यूनिवर्सिटी हो या लखनऊ विश्वविद्यालय। कानपुर यूनिवर्सिटी हो या कोई भी कालेज। राष्ट्रीय या प्रदेश स्तर के किसी भी खेल का सर्टिफिकेट हो या कोई और दस्तावेज। बस, 10 से 20 हजार रुपये कीमत दीजिये और ऐसे प्रमाण पत्र कुछ घंटों में ही आप के पास। ऐसा फर्जीवाड़ा तीन साल से लखनऊ में चल रहा था और किसी को भनक तक नहीं लगी। कुछ समय पहले इस गिरोह से मिला एक फर्जी प्रमाणपत्र एसटीएफ के हाथ लगा तो उसने पड़ताल शुरू की और गुरुवार को इस गिरोह के तीन जालसाजों को गिरफ्तार कर लिया। इन जालसाजों के पास कई विश्वविद्यालयों के ढाई हजार से ज्यादा प्रमाण पत्र, अंक पत्र और अन्य दस्तावेज बरामद हुए हैं। इनमें कई ब्लैंक दस्तावेज भी हैं। एसटीएफ का दावा है कि ये लोग 800 से ज्यादा लोगों को फर्जी दस्तावेज दे चुके हैं। ऐसे दस्तावेज अधिकतर निजी नौकरियों में लगाये गये हैं। एसटीएफ इस मामले में कई और लोगों को रडार पर लिये हुए हैं।
एसटीएफ के डिप्टी एसपी अवनीश्वर चन्द्र श्रीवास्तव के मुताबिक पकड़े गये जालसाजों में बड़ा बरहा, आलमबाग निवासी सुनील कुमार शर्मा, विराट नगर निवासी लल्लन कुमार सिंह और पुराना किला, सदर निवासी विश्वजीत श्रीवास्तव हैं। इनके पास इलाहाबाद विश्वविद्यालय, कानपुर विश्वविद्यालय,पालीटेक्निक के फर्जी दस्तावेज मिले हैं।
10 से 20 हजार रुपये वसूलते थे फर्जी दस्तावेज के लिये
आरोपी सुनील ने एसटीएफ को बताया कि वह लोग 10 हजार रुपये में कालेज के फर्जी दस्तावेज देते थे। सर्टिफिकेट लेने वाला व्यक्ति जिस भी कालेज या यूनिवर्सिटी की जरूरत बताता था, वही का दस्तावेज वह उपलब्ध करा देता था। दिल्ली व अन्य बड़ी यूनिवर्सिटी का प्रमाण पत्र देने के नाम पर वह ज्यादा रकम वसूलता था। डिप्टी एसपी अवनीश्वर ने बताया कि इन लोगों ने ओलम्पिक एसोसिएशन की ओर से जारी फर्जी दस्तावेज तक तैयार कर दिये थे। ये लोग अधिकतर ग्रामीण इलाकों से आये लोगों को अपने चंगुल में फंसाते थे।
ऐसे तैयार करते थे दस्तावेज
जालसाजों ने बताया कि वह लोग जरूरत के मुताबिक दस्तावेज छपवा लेते थे। फिर इनकी मांग आने पर उस पर नाम व अन्य ब्योरा स्कैन कर देते थे जिससे ये एकदम असली प्रमाणपत्र की तरह लगते थे और किसी को शक नहीं होता था। इसके लिये इन लोगों ने आधुनिक प्रिन्टर और कम्प्यूटर अपने घर पर रखे हुए थे।
प्राइवेट कम्पनियों में नौकरी के लिये इस्तेमाल ज्यादा
एसटीएफ के अफसरों ने बताया कि ये फर्जी दस्तावेज अधिकतर निजी कम्पनियों में नौकरी करने वाले लोग बनवाते थे। इसकी वजह यह है कि इन कम्पनियों में शैक्षिक दस्तावेजों की जांच नहीं होती है। एसटीएफ ने इस बात से भी इनकार नहीं किया है कि कई लोगों ने सरकारी नौकरियों में भी इनका इस्तेमाल किया है। इस बारे में जांच की जा रही है।