राजस्थान की राजधानी जयपुर में रविवार देर रात एक दिल दहला देने वाली घटना हुई। प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सवाई मानसिंह (SMS) अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में आग लगने से 7 मरीजों की दर्दनाक मौत हो गई, जबकि कई अन्य मरीज गंभीर रूप से घायल हैं। यह हादसा रविवार रात करीब 12:30 बजे ट्रॉमा सेंटर की दूसरी मंजिल स्थित आईसीयू (ICU) में हुआ, जब अधिकांश मरीज वेंटिलेटर और अन्य लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे।
कैसे लगी आग
अस्पताल प्रशासन के मुताबिक, प्रारंभिक जांच में शॉर्ट सर्किट को आग लगने की वजह माना जा रहा है। ट्रॉमा सेंटर प्रभारी डॉ. अनुराग धाकड़ ने बताया कि हादसे के वक्त ICU और सेमी-ICU में कुल 18 मरीज भर्ती थे। इनमें से 11 मरीज उसी वार्ड में थे, जहां आग लगी थी। आग लगते ही वहां मौजूद मशीनों से उठे धुएं और जहरीली गैसों ने स्थिति और गंभीर बना दी। डॉ. धाकड़ ने बताया कि कई मरीज पहले से ही गंभीर हालत में थे या कोमा में थे, जिससे उनका रेस्पॉन्स कमजोर था। जब तक मरीजों को नीचे शिफ्ट किया गया, तब तक 7 मरीजों ने दम तोड़ दिया। मृतकों में 4 पुरुष और 2 महिलाएं शामिल हैं।
राहत और बचाव अभियान
आग की खबर मिलते ही अस्पताल परिसर में अफरा-तफरी मच गई। स्टाफ, सुरक्षाकर्मी और रिश्तेदार मरीजों को बाहर निकालने में जुट गए। दमकल विभाग की 12 से अधिक गाड़ियां मौके पर पहुंचीं और करीब एक घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया गया। 18 मरीजों को तुरंत दूसरे वार्डों और अस्पताल के सुरक्षित हिस्सों में शिफ्ट किया गया। इनमें से 5 की हालत अभी भी गंभीर बताई जा रही है। अस्पताल स्टाफ के कई सदस्यों और परिजनों को भी धुएं से सांस लेने में दिक्कत हुई, जिनका इलाज वहीं किया जा रहा है।
घटना की जानकारी मिलते ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा रात में ही मौके पर पहुंचे। उन्होंने हालात का जायजा लिया और अधिकारियों को राहत कार्य तेज करने के निर्देश दिए। सीएम ने कहा कि, “घटना बेहद दुखद है, दोषियों की जिम्मेदारी तय की जाएगी और भविष्य में ऐसी त्रासदी न दोहराई जाए, इसके लिए सख्त कदम उठाए जाएंगे।”
हाईलेवल जांच और सुरक्षा समीक्षा के निर्देश
मुख्यमंत्री ने इस हादसे की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैं। स्वास्थ्य विभाग को पूरे अस्पताल के इलेक्ट्रिकल सिस्टम, फायर अलार्म, और आपातकालीन प्रोटोकॉल की समीक्षा करने के निर्देश दिए गए हैं। सूत्रों के अनुसार, प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया गया है कि ICU के अंदर फायर डिटेक्टर सिस्टम काम नहीं कर रहा था और आपातकालीन निकासी मार्गों में भी बाधाएं थीं, जिससे मरीजों को बाहर निकालने में मुश्किल हुई।