मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव का परिणाम आते ही समाजवादी पार्टी के लिए मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं। समाजवादी पार्टी ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में पूरा जोर लगाया था। पार्टी की ओर से करीब 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारे गए थे। लेकिन, समाजवादी पार्टी को इनमें से किसी में भी जीत नसीब नहीं हुई। सबसे बड़ी चर्चा तो बुधनी सीट की रही जहां से मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान के सामने अखिलेश यादव ने महामंडलेश्वर स्वामी वैराज्ञानंद उर्फ मिर्ची बाबा को टिकट दे दिया। लेकिन हालात ये हुए की सीएम के सामने दो राउंड के वोटों की गिनती के बाद सपा उम्मीदवार महज 11 वोट हासिल करने में सफल रहे। मध्य प्रदेश में सपा को मिली करारी हार के बाद अखिलेश यादव की राजनीति को इसे झटके के रूप में देखा जा रहा है।
बता दें कि एमपी चुनाव में अखिलेश यादव ने लगातार चुनाव प्रचार किया था। अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश के किले में सेंध लगान के लिए कई दिनों तक मध्य प्रदेश में डेरा डाल दिया था। लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। इतना ही नहीं अखिलेश यादव की कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग न होने के कारण अनबन भी हुई। दावा किया जा रहा था कि अखिलेश यादव यहां पर विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के जरिए पकड़ बढ़ा सकते हैं। लेकिन, समाजवादी पार्टी को कांग्रेस ने दरकिनार किया जिसके बाद अखिलेश ने मध्य प्रदेश में अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। वहीं दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. को राष्ट्रीय स्तर के चुनावों में ले जाने के दावे किए गए लेकिन, कांग्रेस एमपी में कोई बड़ा करिश्मा कर पाने में सफल नहीं हुई। वहीं, I.N.D.I.A. के सहयोगियों की भी स्थिति कुछ खास बेहतर नहीं रही यहीं वजह है कि अब इंडिया गठबंधन पर भी सवाल उठने लगे हैं।
इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव से पहले एमपी चुनाव को PDA यानी पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक एलायंस का टेस्ट फील्ड माना जा रहा था। घोसी विधानसभा उप चुनाव में जीत से उत्साहित समाजवादी पार्टी PDA को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी राजनीति को सफल बनाने की मुहिम शुरू की थी। क्योंकि मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उनके ‘MY’ समीकरण से इतर अखिलेश अन्य जातियों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश करते दिख रहे हैं। वहीं समाजवादी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी का दर्जा दिलाने का उनका प्रयास लगातार जारी है जो फिलहाल दूर की कोड़ी नजर आ रही है। क्योंकि एमपी चुनाव के परिणाम से अखिलेश यादव को झटका लगा है वहीं उनका PDA फार्मूला भी कुछ खास कमाल नहीं कर पाया है।
मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष ने पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक फ्रंट और जातीय जनगणना के मुद्दे के जरिए वोटों को एकजुट करने का संदेश दिया। अखिलेश यादव अपनी इस नई पॉलिटिक्स को नेशनल लेवल पर स्थापित करने की कोशिश करते मध्य प्रदेश से दिखे। हालांकि, रिजल्ट जो सामने आए हैं, उसने साफ कर दिया है कि उनका ये प्रयास सफल नहीं हुआ। लोगों ने उनकी पीडीए पॉलिटिक्स के साथ-साथ जातीय जनगणना की मांग को भी खारिज कर दिया। वे नेशनल लेवल पर इन दोनों मुद्दों को स्थापित कर पाने में सफल होते नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष के सामने पीडीए की रणनीति पर सवाल उठने शुरू हो सकते हैं।