उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है, जिसमें उसने एक मस्जिद में नमाज रोकने के खिलाफ दिल्ली वक्फ बोर्ड की प्रबंध समिति की अर्जी की सुनवाई समय से पहले करने से इनकार कर दिया था। दिल्ली के महरौली इलाके में मुगल मस्जिद में नमाज रोकने के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में अर्जी दायर की गई है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय से कहा कि वह लंबित मामले में सुनवाई करे और यथाशीघ्र इस पर निर्णय करे।
न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने उच्च न्यायालय के सात मार्च के आदेश के खिलाफ वकील एम सूफियान सिद्दीकी के माध्यम से दिल्ली वक्फ बोर्ड की प्रबंध समिति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। पीठ ने अपने पांच अप्रैल के आदेश में कहा, ‘‘हमें उस मामले में हस्तक्षेप करने का कोई वाजिब आधार नहीं मिला, जो पहले से ही उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है। ऐसे में विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है।” पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, हम उच्च न्यायालय से कहना चाहेंगे कि वह लंबित मामले को उठाए… और कानून के अनुसार गुण-दोष के आधार पर जल्द से जल्द निर्णय करे।”
मस्जिद में नमाज अदा करने पर रोक
उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि एएसआई के अधिकारियों ने बिना किसी नोटिस या आदेश के पिछले साल 13 मई से मुगल मस्जिद में नमाज अदा करने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है, जो ‘पूरी तरह से गैर-कानूनी, मनमाना और जल्दबाजी में’ लिया गया निर्णय है। याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत को बताया कि वे उच्च न्यायालय के उस आदेश से प्रभावित हुए हैं, जिसने मामले को 21 अगस्त को फिर से अधिसूचित करते हुए कहा कि इसी तरह की राहत एक अन्य अर्जी में लंबित है।
शीर्ष अदालत में दायर याचिका में कहा गया था, ‘‘उच्च न्यायालय ने अर्जी पर गौर किये बिना आदेश जारी किया। बाईस मार्च से शुरू हुए रमजान के पवित्र महीने को देखते हुए यह जरूरी था और इस तरह की कोई राहत पूर्व की किसी भी अर्जी में लंबित नहीं है।” याचिका के अनुसार, रमजान का पवित्र महीना ईद-उल-फितर के साथ समाप्त होता है। याचिका में कहा गया था कि यह त्योहार (ईद) 21 या 22 अप्रैल को मनाया जा सकता है और मामले को 21 अगस्त तक के लिए स्थगित करके उच्च न्यायालय ने अर्जी को निष्फल कर दिया है। याचिका में कहा गया है कि मस्जिद कुतुब परिसर के अंदर, लेकिन कुतुब बाड़े के बाहर है, जिसमें संरक्षित स्मारक शामिल हैं।
याचिका में कहा गया था, ‘‘उच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत व्यक्तियों/नागरिकों को राज्य की शक्ति के अतिरेक से बचाने के उपाय पर गौर नहीं कर त्रुटि की है। निर्णय में देरी करके उक्त संवैधानिक लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है।” याचिका में कहा गया था कि मस्जिद को संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया है या यह संरक्षित घोषित स्मारकों का हिस्सा भी नहीं है तथा पिछले साल 13 मई से पहले इसे नमाज के लिए कभी बंद नहीं किया गया था। उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका के जवाब में एएसआई ने कहा है कि मस्जिद कुतुब मीनार की सीमा के भीतर आती है और संरक्षित क्षेत्र के भीतर है, जहां नमाज की अनुमति नहीं दी जा सकती।