यह सैटेलाइट से ली गई चांद की तस्वीर नहीं नहीं है। यह इंदौर की वह पिच है जिस पर भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच तीसरा टेस्ट मैच हुआ। भारतीय टीम सवा दो दिन में मुकाबला हार गई और मैच के बाद ICC ने इस पिच को ‘खराब रेटिंग’ दी।
ऐसा नहीं है कि इस तरह की पिच पहली बार देखने को मिली है। भारत में पिछले कुछ सालों में जितने भी टेस्ट मैच हुए हैं उनमें ज्यादातर में ऐसी ही पिच पर खेल हुआ है।
सवाल उठता है कि भारत अपने घर में इस तरह की पिचें क्यों बनवा रहा है। क्या सामान्य पिच पर टीम को जीत नहीं मिल सकती?
इस सवाल का विस्तार से जवाब इस स्टोरी में जानेंगे। साथ ही यह भी जानेंगे कि ऐसी पिचों के क्या साइड इफेक्ट भारत को झेलने पड़ रहे हैं। आखिर में हम यह भी देखेंगे कि स्पिनर फ्रेंडली पिचें बनवाई कैसे जाती हैं। टीम मैनेजमेंट की ओर से ग्राउंड स्टाफ को क्या संदेश दिए जाते हैं।
शुरुआत करते हैं उन दो कारणों से जो इन पिचों के लिए जिम्मेदार हैं
1. टॉस की अहमियत को खत्म करना
भारत की ट्रैडिशनल पिचें पहले दो दिन बल्लेबाजी के लिए स्वर्ग होती हैं। तीसरे दिन से गेंद टर्न लेना शुरू करती हैं और चौथे-पांचवें दिन ये स्पिनर्स के लिए स्वर्ग बन जाती जाती हैं।
मजबूत टीमों के खिलाफ ऐसी पिचों पर एक बड़ा खतरा टीम इंडिया झेल रही थी। वह खतरा था टॉस हारने का। टॉस हारने की स्थिति में सामने वाली टीम पहले बल्लेबाजी करते हुए अगर 500-600 रन का स्कोर टांग देती थी तो फिर भारत के लिए मैच में वापसी मुश्किल हो जाती थी।
2021 में इंग्लैंड के खिलाफ चेन्नई में कुछ ऐसा ही हुआ था। इंग्लैंड ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी चुनी और कप्तान जो रूट के दोहरे शतक की बदौलत 578 रन बना दिए। भारत यह मैच 227 रन से हारा।
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पहले दो दिन स्पिनर्स को न के बराबर मदद मिली और इंग्लैंड के बल्लेबाजों ने आसानी से रन बनाए। तीसरे दिन भारत को बल्लेबाजी मिली और तब तक स्पिनर्स गेम में आ चुके थे। भारत वापसी नहीं कर सका।
इसके बाद दूसरे टेस्ट से ऐसी पिचें बनवाई गईं जिन पर पहले दिन से टर्न मौजूद हो। नतीजा। भारत ने अगले तीनों टेस्ट जीत लिए और सीरीज को 3-1 से अपने नाम कर ली।
2. WTC पॉइंट्स हासिल करने का दबाव
जब से वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप (WTC) की शुरुआत हुई है तब से हर टीम को दो साल के टाइम पीरियड में तीन टेस्ट सीरीज अपने घर में और तीन सीरीज बाहर जाकर खेलना होता है।
पहली WTC (2019-21) में भारत को अपनी आखिरी सीरीज इंग्लैंड के खिलाफ अपने घर में खेलनी थी। फाइनल में पहुंचने के लिए भारत को 4 में से तीन टेस्ट मैच जीतना था। पहले मुकाबले में हार के बाद भारत के ऊपर सभी मैच जीतने का दबाव था। फिर ऐसी पिचें बनवाई गईं जिन पर भारत की जीत की संभावना सबसे ज्यादा हो।
मौजूदा WTC (2021-23) में भारत को फाइनल में जगह बनाने के लिए अपने आखिरी 6 में से 5 मैचों में जीत हासिल करने की जरूरत थी। भारत ने बांग्लादेश को 2 टेस्ट मैचों की सीरीज में 2-0 से हराया। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चार मैचों की सीरीज में कम से कम 3-1 के अंतर से जीत हासिल करने का दबाव था। फिर ऐसी पिचें बनवाई जा रही हैं जिन पर भारतीय टीम की जीत की संभावना ज्यादा हो। सीरीज के पहले दो टेस्ट मैच में जीत से इस थ्योरी को बल भी मिला कि पिचें ऐसी हों जहां पहले दिन से टर्न मिले।
हालांकि, ऑस्ट्रेलिया ने तीसरे टेस्ट में बाजी पलट दी है और भारतीय टीम अपने ही ट्रैप में फंसती नजर आ रही है। इसके बावजूद भारतीय कप्तान रोहित शर्मा ने संकेत दिए हैं कि चौथे टेस्ट में भी वैसी ही पिच देखने को मिल सकती है जैसी पहले तीन टेस्ट मैचों में थी।
पिच के मिजाज पर क्या कहते हैं ICC के नियम
आगे हम जानेंगे कि स्पिनर्स की जरूरत से ज्यादा मददगार पिचें भारत के लिए कितनी नुकसानदायक रही हैं। उससे पहले यह जानते हैं कि टेस्ट मैच की पिचें कैसी हों इस पर ICC का स्टैंड क्या है।
ICC किसी बायलैट्रल (द्विपक्षीय) सीरीज में होम टीम को अपनी स्ट्रेंथ के मुताबिक पिचें तैयार करने की छूट देती है। दुनियाभर की तमाम टीमें 146 साल से ऐसा करती भी रही हैं। इसलिए भारतीय टीम मैनेजमेंट का स्पिन ट्रैक बनवाना किसी नियम और नैतिकता का उल्लंघन नहीं करता है। हालांकि, ICC बैट और बॉल के बीच फेयर कॉन्टेस्ट पर भी जोर देती है। इसका मानना है कि पिचें बिल्कुल ऐसी न बन जाए जिन पर या तो बल्लेबाज पूरी तरह हावी हो जाएं या फिर गेंदबाज। इसलिए ICC हर मैच के बाद पिच की रेटिंग जारी करती है।
भारत-ऑस्ट्रेलिया सीरीज के पहले दो टेस्ट मैचों की पिचों को एवरेज रेटिंग मिली थी। एवरेज का मतबल है काम चलाऊ। लेकिन इंदौर की पिच को पुअर रेटिंग मिली है। इसका मतलब है कि ऐसी पिचें स्वीकार्य नहीं हैं।
अब जानते हैं भारत को स्पिन ट्रैक बनवाने के क्या नुकसान झेलने पड़े हैं…
1. हमारे बल्लेबाज रन बनाना भूले
स्पिनिंग ट्रैक पर सिर्फ विदेशी बल्लेबाज ही नहीं हमारे सितारे भी स्ट्रगल कर रहे हैं। 1 जनवरी 2021 से अब तक ऋषभ पंत के अलावा कोई भी भारतीय बल्लेबाज टेस्ट क्रिकेट में भारतीय पिचों पर 50 के ऊपर की औसत से रन नहीं बना पाया है। 2021 से पहले तक 50 के ऊपर की औसत से रन बनाने वाले विराट कोहली इस दौरान भारत में 10 टेस्ट मैचों में 25 की औसत महज 400 रन बना पाए हैं। चेतेश्वर पुजारा की औसत 23 की है। अजिंक्य रहाणे ने सिर्फ 18 की औसत से रन बनाए।
2. विदेशों में भी मिलती हैं स्पाइसी पिचें
अगर हम विदेशी बल्लेबाजों के फेल होने के लिए स्पिन फ्रेंडली ट्रैक बनावाते हैं तो बदले में हमें भी विदेश में पेस फ्रेंडली ट्रैक मिलते हैं। विदेशी टीमें भारत से हिसाब बराबर करने के लिए ऐसा करती हैं। इससे हमारे ज्यादातर बल्लेबाज विदेश में भी स्ट्रगल करते नजर आ रहे हैं। गनीमत है कि हमारे पास इस समय पेस और स्पिन दोनों डिपार्टमेंट में एक से बढ़कर एक गेंदबाज हैं। लिहाजा हम हर तरह की पिचों पर जीतते ज्यादा हैं और हारते कम हैं।
3. घर में अपने जाल में फंसने का खतरा
अगर पिचें गेंदबाजों के लिए बहुत ज्यादा मददगार हो जाती है तो इस पर कई बार विदेशी टीमें भी हावी हो जाती हैं। 2017 में पुणे टेस्ट में बिखरी हुई पिच पर ऑस्ट्रेलिया ने हमें हरा दिया। तब स्टीव ओ कीफ नाम के गुमनाम से स्पिनर ने हमारे बल्लेबाजों का जीना मुहाल कर दिया था। अब इंदौर टेस्ट में भी वैसा ही नजारा देखने को मिला है।
अब जानते हैं कि स्पिन फ्रेंडली ट्रैक बनवाए कैसे जाते हैं
भारत में पिच सामान्य होगी या स्पिनर फ्रेंडली यह इस बात पर निर्भर करता है कि पिच पर पानी कितना डाला जाता है। स्पिनर फ्रेंडली पिच बनाने के लिए आम तौर पर 48 से 72 घंटे पहले (तापमान के अनुसार) पानी डालना बंद कर दिया जाता है। इससे पिच की ऊपर सतह पूरी तरह ड्राय हो जाती है और खेल की शुरुआत से ही वह बिखरने लगती है। इससे रफ मार्क जल्दी बन जाते हैं और स्पिनर्स हावी हो जाते हैं।
पिच बनाने का साइंस क्या है?
पिच बनाने के लिए सबसे पहले मैदान के बीच में करीब 100 फीट लंबी और 10 फीट चौड़ी जगह चुनी जाती है। लंबाई हमेशा नॉर्थ-साउथ डायरेक्शन में ही रखी जाती है। जिससे सूरज की किरणें बल्लेबाज की आंखों में नहीं पड़े।
इसके बाद तय जगह पर करीब 13 इंच गहरा गड्ढा खोदा जाता है। इस गड्ढे में सबसे पहले ड्रेनेज का सिस्टम तैयार होता है। उसके लिए बाकायदा स्लोप तैयार करके पानी निकलने के लिए पाइप डाला जाता है। इससे बारिश होने पर पानी आसानी से निकल जाता है और पिच खराब नहीं होती।