बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बावजूद भी जहरीली शराब का कहर लगातार जारी है। जहरीली शराब का सेवन करने से आए दिन लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है। इसी बीच अब सुप्रीम कोर्ट ने शराबबंदी के तहत आने वाले मामलों की सुनवाई हेतु विशेष अदालतों के लिए अवसरंचना स्थापित करने में सात साल की देरी पर बिहार सरकार को फटकार लगाई है। कोर्ट ने सवाल किया कि सरकार अदालतों के लिए अपनी इमारतें खाली क्यों नहीं कर देती।
”सरकारी इमारतों को खाली क्यों नहीं कर देते?”
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अभय एस ओका ने कहा कि कानून को 2016 में पारित किया गया लेकिन अबतक विशेष अदालतें गठित करने के लिए जमीन तक चिह्नित नहीं की गई है। पीठ ने हैरानी जताई कि क्यों नहीं शराबबंदी अधिनियम के तहत आरोपित सभी आरोपियों को इन मामलों की सुनवाई के लिए आवश्यक अवसंरचना स्थापित करने तक जमानत पर रिहा किया जाए। पीठ ने बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार से कहा, ‘‘आपने वर्ष 2016 में कानून पारित किया और सात साल बीतने के बावजूद आप विशेष अदालतें गठित करने के लिए अब भी जमीन देख रहे हैं। क्यों नहीं हम इस कानून के तहत दर्ज मामले के सभी आरोपियों को जमानत दे दें? आप अदालतों के लिए सरकारी इमारतों को खाली क्यों नहीं कर देते?”
”ऐसे मामले की सुनवाई न्यायपालिका पर बोझ”
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस अधिनियम के तहत 3.78 लाख आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं जिनमें से केवल 4116 मामलों का निस्तारण किया गया है जो दिखाता है कि ऐसे मामले की सुनवाई न्यायपालिका पर बोझ है। न्यायालय ने कहा, ‘‘यही समस्या है, आपने न्यायापलिका की अवसंरचना और समाज पर पड़ने वाले असर को देखे बिना कानून पारित कर दिया। आप क्यों नहीं समझौते को प्रोत्साहित करते, अगर अवसरंचना समस्या है।”
शराबबंदी से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही है SC
बता दें कि शीर्ष अदालत वर्ष 2016 में लागू शराबबंदी कानून से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही है। न्यायमित्र की भूमिका निभा रहे गौरव अग्रवाल ने कहा कि उच्च न्यायालय ने कार्यकारी मजिस्ट्रेट की शक्तियों वाले प्रावधान पर आपत्ति जताई है और कानून के प्रावधानों में संशोधन की जरूरत है। पीठ ने कुमार को एक सप्ताह का समय राज्य सरकार से आवश्यक निर्देश प्राप्त करने के लिए देते हुए कहा कि वह इस मामले के सभी पहलुओं पर विचार करेगी।