दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को व्यंग्यात्मक वेबसाइट “दहेज कैलक्यूलेटर” पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली वेबसाइट की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा। याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि वेबसाइट दहेज की सामाजिक बुराई का मज़ाक उड़ाती है और “यह स्पष्ट है कि यह एक व्यंग्य है”। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने पूछा कि क्या वेबसाइट दहेज गणना से अच्छा राजस्व कमा रही है और कहा, “हालांकि यह काफी रचनात्मक है।”
वेबसाइट को 2011 में शुरू किया गया था और यह किसी व्यक्ति के विवरण दर्ज करने पर दहेज की राशि की गणना करती है। वेबसाइट का कहना है कि यह “भारत की सभी मैच मेकिंग आंटियों को समर्पित है”। उच्च न्यायालय ने केंद्र को नोटिस जारी किया और पक्षकारों को प्रासंगिक केस कानूनों के साथ अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने के लिए कहा। अदालत ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 16 मई को सूचीबद्ध किया। वेबसाइट के निर्माता याचिकाकर्ता तनुल ठाकुर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा कि यह एक मुफ्त वेबसाइट है और इसका कोई राजस्व नहीं है।
उन्होंने कहा, “वेबसाइट सामाजिक बुराई (दहेज प्रथा) का मज़ाक उड़ाती है। यह स्वयं स्पष्ट है कि यह एक व्यंग्य है। यह एक सामाजिक बुराई का मज़ाक उड़ाती है। यह दहेज को प्रोत्साहित नहीं करती है। लेकिन सरकार का रुख यह है कि यह दुनिया की नजर में भारत को बदनाम करेगी।” मई 2011 में बनी इस वेबसाइट को एक शिकायत के बाद सरकार ने 2018 में ब्लॉक कर दिया था।