बिहार में जातिगत जनगणना (Caste Census) कराने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) 20 जनवरी को सुनवाई करेगा। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को इस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई। दरअसल, जातिगत जनगणना कराने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल की गई। याचिका में दावा किया गया है कि संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है। याचिका पर आने वाले दिनों में सुनवाई होने की उम्मीद है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि जाति आधारित जनगणना संबंधी अधिसूचना ‘‘भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक” है।
20 जनवरी को होगी मामले की सुनवाई
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील द्वारा मामले का उल्लेख किए जाने के बाद इसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई अगले शुक्रवार (20 जनवरी) को की जाएगी। गौरतलब है कि जातिगत जनगणना के संबंध में यह दूसरी याचिका है। बिहार में सात जनवरी से जातिगत जनगणना जारी है। अधिवक्ता बरुण कुमार सिन्हा के जरिए दायर जनहित याचिका में बिहार सरकार के उप सचिव द्वारा राज्य में जातिगत जनगणना कराने के लिए जारी अधिसूचना को रद्द करने और अधिकारियों को इस पर आगे बढ़ने से रोकने का अनुरोध किया गया है।
“संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है अधिसूचना”
याचिका में आरोप लगाया गया है कि छह जून, 2022 को जारी अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है, जिसमें विधि के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण का प्रावधान है। वहीं याचिकाकर्ता ने कहा कि अधिसूचना ‘‘गैर कानूनी, मनमानी, अतार्किक और असंवैधानिक” है। नालंदा निवासी अखिलेश कुमार ने अपनी याचिका में कहा, ‘‘अगर जाति आधारित सर्वेक्षण का घोषित उद्देश्य उत्पीड़न की शिकार जातियों को समायोजित करना है, तो देश और जाति आधारित भेद करना तर्कहीन और अनुचित है। इनमें से कोई भी भेद कानून में प्रकट किए गए उद्देश्य के अनुरूप नहीं है।”