सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एक याचिका दायर कर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण बरकरार रखने वाले उसके फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया। कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने शीर्ष न्यायालय में याचिका दायर कर सात नवंबर के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि आर्थिक न्याय करने की सरकार की कोशिश को व्यर्थ करने में संविधान के मूल ढांचे का उपयोग करना स्वीकार्य नहीं हो सकता। न्यायालय ने 3:2 के बहुमत वाला अपना फैसला 103वें संविधान संशोधन के पक्ष में दिया था।
तब सीजेआई ललित और संविधान पीठ के सदस्य जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने 103वां संविधान संशोधन से असहमति व्यक्त की थी, जबकि जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस जे. बी. पारदीवाला ने आरक्षण के लिए 103 वां संविधान संशोधन को उचित बताते हुए उसे बरकरार रखने के पक्ष में अपना फैसला सुनाया था। जस्टिस ललित और जस्टिस भट्ट ने 103 वां संशोधन को गैर संवैधानिक करार दिया था।
जस्टिस भट्ट ने संविधान संशोधन पर अपनी असहमति व्यक्त की और कहा था कि यह संशोधन सामाजिक न्याय के ताने-बाने और बुनियादी ढांचे को कमजोर करता है। जस्टिस माहेश्वरी ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता। जस्टिस त्रिवेदी ने भी सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि आजादी के 75 सालों के बाद परिवर्तनकारी संवैधानिक की भावना से समान रूप से आरक्षण पर फिर से विचार करने की जरुरत है।
जस्टिस पादरीवाला ने जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस त्रिवेदी के फैसलों से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि आरक्षण को निहित स्वार्थ नहीं बनने दिया जा सकता। उन्होंने जरूरतमंदों को मदद की वकालत करते हुए कहा कि जो आगे बढ़ गए हैं, उन्हें पिछड़ा वर्ग के लाभ से हटा देना चाहिए। उन्होंने पिछड़े वर्गों को निर्धारित करने के तौर तरीकों को प्रसांगिक बनाने का फैसला सुनाया। संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस को आरक्षण प्रदान करने वाले 103 वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली स्वयंसेवी संस्था (एनजीओ) ‘जनहित अभियान’ और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं बहुमत के फैसले से खारिज कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश ललित की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं पर सात दिन की लंबी सुनवाई के बाद 27 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। शीर्ष अदालत के समक्ष सुनवाई के दौरान तत्कालीन अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखते हुए ईडब्ल्यूएस को आरक्षण दिए जाने के प्रावधान का जोरदार तरीके से समर्थन किया था।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष केंद्र सरकार ने दावा किया था कि 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण का अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी /एसटी) अन्य पिछड़ी जातियां (ओबीसी) और सामान्य श्रेणियों को पहले से दी जा रही तय 50 फीसदी आरक्षण अलग है। केंद्र सरकार ने अदालत को बताया था कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण के मद्देनजर उसने सभी उच्च केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों को सीटों की संख्या में 25 फीसदी की वृद्धि करने का निर्देश दिया था।