राजस्थान में नए डीजीपी उमेश मिश्रा की नियुक्ति से सीएम गहलोत ने विधानसभा चुनाव से पहले ब्राह्मणों पर दांव खेला है। मुख्य सचिव ऊषा शर्मा के बाद नए डीजीपी ब्राह्माण वर्ग से आते हैं। खास बात ये है दोनों ही यूपी के हैं। मिश्र का नियुक्ति कर गहलोत ने ब्राह्मण वोटर्स को साधने की कवायद की है। राजस्थान की राजनीति में ब्राह्मणों का अलग वर्चस्व रहा है। माना जा रहा है कि सीएम गहलोत के इस प्रयोग के पीछे बड़ा राजनीतिक एजेंरड़ा छिपा है। राजस्थान में ब्राह्माणों की आबादी करीब 10 फीसदी है। करीब 50 सीटों पर ब्राह्मण समाज के वोटों से ही हार-जीत का फैसला होता है। 1989 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अधिकार उमेश मिश्रा सीएम गहलोत के संकटमोचक माने जाते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गहलोत हर फैसले चुनावों को ध्यान में ऱखकर ही ले रहे हैं।
2020 में गहलोत के संकट मोचक बने
सचिन पायलट की वर्ष 2020 में बगावत के समय उमेश मिश्रा ने सरकार को गिराने से बचाने के लिए अहम कड़ी निभाई थी। डीजी इंटेलीजेंस रहते हुए उमेश मिश्रा सीएम गहलोत के आंख-कान बने रहे। सीएम गहलोत ने मिश्रा की नियुक्ति कर उन्हें वफादारी का इनाम दिया है। संघ लोक सेवा आयोग ने राज्य सरकार को 12 में से तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों का चयन कर पैनल भेजा था। वरिष्ठता के हिसाब से डीजी जेल भूपेंद्र कुमार दक, डीजी होमागार्ड उत्कल साहू और डीजी इंटेलिजेंस उमेश मिश्रा प्रमुख दावेदार थे। सीएम गहलोत ने उमेश मिश्रा के नाम को हरी झंड़ी दे दी ।
गहलोत ने EWS आरक्षण में दी थी राहत
इससे पहले गहलोत सरकार ने 2019 में राज्य में EWS आरक्षण में बड़ी राहत दी थी। अब केवल वार्षिक आय को ही पात्रता का आधार माना जाएगा। राज्य सरकार अचल सम्पतियों के प्रावधान समाप्त कर दिया। प्रदेश की राजकीय सेवाओं और शिक्षण संस्थाओं में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानी ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए परिवार की कुल वार्षिक आय अधिकतम 8 लाख रुपए ही एक मात्र आधार माना जाएगा। सीएम अशोक गहलोत ने प्रदेश में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर दी थी।