यूपी की राजनीति में वनवास झेल रही बसपा अपने मूल एजेंडे पर वापस लौट दिखती रही है। राजनीति में पैठ बनाने के लिए बसपा संस्थापक कांशीराम द्वारा अपना गए फार्मूले को ही लोकसभा चुनाव में हथियार बनाने की तैयारी है। इसका परीक्षण पहले निकाय चुनाव में किया जाएगा। इसमें जो भी कमी रहेगी उसे आगे सुधारा जाएगा।
जातियों को रिझाने के लिए जिम्मेदारी
बसपा सुप्रीमो मायावती ने हाल ही में पश्चिमी यूपी के मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले इमरान मसूद को पार्टी में शामिल किया है। इमरान को पार्टी में ज्वाइन कराने के साथ ही उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश का संयोजक बनाया गया। इसके बाद पदाधिकारियों की बैठक में उन्हें पश्चिमी यूपी के चारों मंडलों सहारनपुर, अलीगढ़, मेरठ और आगरा की जिम्मेदारी देने के साथ ही उत्तराखंड के संयेजक बनाया गया। पश्चिमी यूपी में मुस्लिम वोट बैंक ठीक-ठाक है। इसके साथ ही मायावती की बिरादारी का भी वोट बैंक ठीक है। वह इन्हीं दोनों वोट बैंक का साथ पाना चाहती हैं।
अति पिछड़ों को बढ़ावा
कांशीराम हमेशा एससी, एसटी, पिछड़े और अति पिछड़ों की बात करते थे। वह जानते थे कि यह वोट बैंक जिधर मुड़ा उसके हाथ सत्ता आई। इसीलिए मायावती इसी पुराने फार्मूले को एक बार फिर से धार देने में जुट गई हैं। पार्टी में पिछड़ों को अति पिछड़ों का कद बढ़ाया जा रहा है। राजभर बिरादरी का साथ पाने के लिए प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को आगे किया जा रहा है। उन्हें पूर्वांचल में लगाते हुए अति पिछड़ों को गोलबंद करने का काम किया जा रहा है। बताया जा रहा कि और भी पिछड़े नेताओं को पार्टी में आगे बढ़ाया जाएगा।
एक सीट पर पहुंचने का मलाल
वर्ष 2007 के चुनाव में पूर्ण बहुमत की सरकारी बनाने वाली बसपा ने उस समय सर्वसमाज का नारा दिया था। इसके आधार पर सभी जातियों को पार्टी में जोड़ा गया, खासकर ब्राह्मणों को सर्वाधिक महत्व दिया गया। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भी इसी सर्व समाज के सहारे जीत का ताना-बाना बुना गया। जिलों में जोरशोर से ब्राह्मण सम्मेलनों का आयोजन हुआ। तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार…, का नारा देने वाली बसपा हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है का नारा देने लगी। परिणाम आया तो मात्र उसे एक सीट पर जीत मिली। बसपा को इसका मलाल है।