ईरान में हिजाब विरोधी आंदोलन ने ऐसा रूप ले लिया कि सत्ता की जड़ें हिल गईं और इस्लामिक सरकार ने अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों पर साजिश के आरोप लगाने शुरू कर दिए। अब ईरान के सियासी गलियारों में भी हिजाब से संबंधित कानून के खिलाफ आवाज उठने लगी है। एक सीनियर राजनेता ने कहा है कि हिजाब कानून की फिर से समीक्षा करने की जरूरत है। ईरानी संसद के पूर्व स्पीकर अली लारीजानी ने कहा कि आंदोलन सियासी जड़ों तक पहुंच गया है। हालांकि में सीधा-सीधा अमेरिका या किसी और देश को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है।
ईरान की एक न्यूज वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, संस्कृति के आधार पर ही हिजाब का हल निकल सकता है। इसके लिए किसी जनमत संग्रह की जरूरत नहीं है। मैं देश की सेना और पुलिस की तारीफ करता हूं लेकिन लोगों को हिजाब पहनवाने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर नहीं डालनी चाहिए। उन्होंने कहा, जब संस्कृति से जुड़ा कोई आंदोलन बड़ा हो जाता है तो सख्ती से पेश आने से हल नहीं निकलता। जो लोग प्रदर्शन कर रहे हैं और सड़कों पर उतर रहे हैं वे भी हमारे ही बच्चे हैं।
1979 से पहले शाह के शासन के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि पहले हिजाब को लेकर कोई जबरदस्ती नहीं थी। लोग अपनी इच्छा से इसे पहनते थे। लारिजानी का यह बयान दिखाता है कि किस तरह से महसा अमीनी की मौत के बाद ना केवल जनता में आक्रोश है बल्कि सत्ता में भी दो धड़े हो गए हैं। बता दें महसा अमीनी को ठीक से हिजाब ना पहनने के आरोप में हिरासत में लिया गया था। पुलिस हिरासत में ही संदिग्ध परिस्थितियो में उनकी मौत हो गई थी।
ईरान प्रशासन और सुप्रीम लीडर अयतोल्लाह अली खमेनेई ने इस आंदोलन के लिए पश्चिमी देशों को जिम्मेदार बताया था। वहीं अमीनी के परिवार पर भी प्रशासन ने सवाल खड़े करने शुरू कर दिए थे। बुधवार को भी तेहरान में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शनकारियों से सुरक्षाबलों की झड़प भी हो गई। इसके बाद कई इलाकों में इंटरनेट बंद कर दिया गया। ईरान की एजेंसियों का कहना है कि अब तक आंदोलन के चलते 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।