दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) वी.के. सक्सेना और अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के बीच जारी तकरार कम होने का नाम नहीं ले रही है। एलजी ने ‘आप’ सरकार के खिलाफ अब एक नया मोर्चा खोलकर केजरीवाल की टेंशन बढ़ा दी है। उपराज्यपाल ने मंगलवार को दिल्ली के मुख्य सचिव को बिजली वितरण कंपनी बीएसईएस को ‘आप’ सरकार द्वारा दी जाने वाली बिजली सब्सिडी में कथित अनियमितताओं की जांच का आदेश दिया है। एलजी ने सात दिन इस मामले की रिपोर्ट मांगी है।
उपराज्यपाल सचिवालय ने मुख्य सचिव से पूछा है कि दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डीईआरसी) के 19.02.2018 के आदेश, जिसमें दिल्ली सरकार को डीबीटी (डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर) के माध्यम से उपभोक्ताओं को बिजली सब्सिडी का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था, इसे अब तक लागू क्यों नहीं किया गया है।
उपराज्यपाल को प्रख्यात वकीलों, न्यायविदों और कानून पेशेवरों के एक समूह की ओर से बिजली सब्सिडी में कथित अनियमितताओं की गई है। शिकायतकर्ताओं ने ‘आप’ के प्रवक्ता और दिल्ली के डायलॉग एंड डेवलपमेंट कमीशन (डीडीसी) के उपाध्यक्ष जैस्मीन शाह और ‘आप’ सांसद एनडी गुप्ता के बेटे नवीन गुप्ता के इन अनियमितताओं और विसंगतियों में लिप्त होने का आरोप लगाया है।
आरोपों के मुताबिक, जैस्मीन शाह और नवीन गुप्ता द्वारा एक बड़ा घोटाला किया गया है, जिन्हें केजरीवाल सरकार द्वारा अनिल अंबानी ग्रुप के स्वामित्व वाली बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड (बीआरपीएल) और बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड (बीवाईपीएल) के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में डायरेक्टर नियुक्त किया गया है। इन निजी डिस्कॉम्स में दिल्ली सरकार के 49% शेयर हैं।
शिकायतकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया है कि ‘आप’ सरकार ने सरकारी बिजली उत्पादन कंपनियों से खरीदी गई बिजली के लिए बीएसईएस डिस्कॉम पर कथित रूप से बकाया 21,200 करोड़ रुपये की वसूली के बजाय उन्हें सब्सिडी प्रतिपूर्ति के माध्यम से अपने बकाया का निपटान करने की अनुमति दी।
वहीं, यह भी आरोप लगाया गया है कि इन निजी बिजली वितरण कंपनियों को उपभोक्ताओं से 18 प्रतिशत की दर से लेट पेमेंट सरचार्ज (एलपीएससी) चार्ज वसूल करने की अनुमति दी गई थी, जबकि उन्होंने खुद दिल्ली सरकार की बिजली उत्पादन कंपनियों को 12 प्रतिशत एलपीएससी का भुगतान किया था। ऐसा करके राज्य के खजाने की कीमत बीएसईएस और बीवाईपीएल को 8,500 करोड़ रुपये का अप्रत्याशित लाभ प्रदान किया गया।
एक अन्य आरोप यह था कि डीईआरसी द्वारा निर्देशित उपभोक्ताओं को सब्सिडी भुगतान के लिए डीबीटी पर अमल नहीं करना ‘आप’ सरकार द्वारा सब्सिडी लाभार्थियों की वास्तविक संख्या को छुपाने के उद्देश्य से किया गया था।