कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव को लेकर राजस्थान में शुरू हुए घमासान का आखिर समाधान क्या है? राजस्थान में मुख्यमंत्री बदला जाएगा या फिर गहलोत कुर्सी बरकरार रख पाएंगे? इस तरह के सवाल पिछले कई दिनों से जस के तस हैं। 4 दिन पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से अशोक गहलोत और सचिन पायलट की मुलाकात के बाद से ही इस फैसले का इंतजार किया जा रहा है। कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भी शुक्रवार को कहा था कि 1-2 दिन में मुख्यमंत्री पर फैसला हो जाएगा। हालांकि, अब तक पार्टी की ओर से ना तो कोई फैसला सुनाया गया है और ना ही कोई संकेत दिया गया है।
दिल्ली में सोनिया गांधी से माफी मांगकर लौटे अशोक गहलोत ने रविवार को एक बार फिर अपने तेवर दिखाए और इशारों में साफ कर दिया कि सचिन पायलट उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में मंजूर नहीं हैं। गहलोत ने इशारा किया कि राज्य में अधिकतर विधायक उनके साथ हैं। उन्होंने कहा कि इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि राज्य में नए मुख्यमंत्री के नाम पर विधायकों में नाराजगी क्यों है। उन्होंने कहा, ”नए मुख्यमंत्री की नियुक्ति किए जाने पर 80 से 90 फीसदी विधायक पाला बदल लेते हैं, वे नए नेता के साथ हो जाते हैं, मैं इसे गलत भी नहीं मानता, लेकिन राजस्थान में ऐसा नहीं हुआ।”गहलोत ने सचिन पायलट का नाम लिए बिना कहा, ”जब नए मुख्यमंत्री के आने की संभावना थी तो क्या कारण था कि उनके नाम से ही विधायक बुरी तरह से भड़क गए, जो आज तक कभी नहीं हुआ… उन्हें इतना भय किस बात का था… क्या उनके मन में कुछ चल रहा था और सबसे बड़ी बात तो यह है कि कैसे उन्हें इस बारे में मालूम पड़ा।”
गहलोत को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे माना जा रहा था। इससे राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन और पायलट को नया मुख्यमंत्री बनाए जाने की अटकलों के बीच गहलोत के वफादार कई विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप दिया था। हालांकि, गहलोत ने बाद में घोषणा की थी कि वह कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ेंगे। अटकलें हैं कि पार्टी हाईकमान गहलोत से नाराज है और उन्हें सीएम पद से भी हटाना चाहती है।
क्यों देर कर रही हैं सोनिया
बताया जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान राज्य में बदलाव के पक्ष में है। पार्टी नेतृत्व 2018 से ही ‘सीएम इन वेटिंग’ सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने को तैयार है। हालांकि, विधायकों पर ‘गहलोत का जादू’ आड़े आ रहा है। पार्टी नेतृत्व इस बात को जानता है कि अधिकतर विधायक अभी भी गहलोत के पक्ष में हैं और खुद गहलोत भी मुख्यमंत्री पद के लिए सबकुछ दांव पर लगाने को तैयार हैं। कांग्रेस अध्यक्ष पद के सबसे प्रबल दावेदार समझे जा रहे गहलोत ने खुद को इस रेस से तो बाहर कर लिया लेकिन राजस्थान का मोह वह छोड़ नहीं पा रहे हैं। पार्टी रणनीतिकारों को आशंका है कि गहलोत की मर्जी के खिलाफ जाने पर राज्य में सरकार खतरे में पड़ सकती है। बताया जा रहा है कि पार्टी एक ऐसा रास्ता निकालने की कोशिश में है जिससे दोनों पक्षों को संतुष्ट किया जा सके।